मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे / बशीर बद्र

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे
गिरे पड़े हुए लफ़ज़ों को मोहतरम कर दे



ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो
इसी में उसका भला है ग़ुरूर कम कर दे



यहाँ लिबास, की क़मीत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे



चमकने वाली है तहरीर मेरी क़िस्मत की
कोई चिराग़ की लौ को ज़रा सा कम कर दे



किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे

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