रविवार, अप्रैल 26, 2009

दोनों चित्र सामने मेरे / हरिवंशराय बच्चन

दोनों चित्र सामने मेरे।


सिर पर बाल घने, घंघराले,

काले, कड़े, बड़े, बिखरे-से,

मस्‍ती, आजादी, बेफिकरी,

बेखबरी के हैं संदेसे।


माथा उठा हुआ ऊपर को,

भौंहों में कुछ टेढ़ापन है,

दुनिया को है एक चुतौती,

कभी नहीं झुकने का प्राण है।


नयनों में छाया-प्रकाश की

आँख-मिचौनी छिड़ी परस्‍पर,

बेचैनी में, बेसबरी में

लुके-छिपे हैं अपने सुंदर


सिर पर बाल कढ़े कंघी से

तरतीबी से, चिकने काले,

जग की रुढि़-रीति ने जैसे

मेरे ऊपर फंदें डाले।


भौंहें झुकी हुईं नीचे को,

माथे के ऊपर है रेखा,

अंकित किया जगत ने जैसे

मुझ पर अपनी जय का लेखा।


नयनों के दो द्वार खुले हैं,

समय दे गसा ऐसी दीक्षा,

स्‍वागत सबके लिए यहाँ पर,

नहीं किसी के लिए प्रतीक्षा।

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