रविवार, अप्रैल 26, 2009

मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा / हरिवंशराय बच्चन

मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा!


तेरे साथ खिली जो कलियाँ,

रूप-रंगमय कुसुमावलियाँ,

वे कब की धरती में सोईं, होगा उनका फिर न सवेरा!

मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा!


नूतन मुकुलित कलिकाओं पर,

उपवन की नव आशाओं पर,

नहीं सोहता, पागल, तेरा दुर्बल-दीन-अंगमल फेरा!

मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा!


जहाँ प्‍यार बरसा था तुझ पर,

वहाँ दया की भिक्षा लेकर,

जीने की लज्‍जा को कैसे सहता है, मानी, मन तेरा!

मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा!

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