शनिवार, मई 02, 2009

छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं

छ्लक के कम ना हो ऐसी कोई शराब नहीं
निगाहे नरगिसे राना, तेरा जवाब नहीं

ज़मीं जाग रही है कि इन्कलाब है कल
वो रात है कि कोई ज़र्रा भी महवे ख्वाब नहीं

ज़मीं उसकी, फ़लक उसका, कायनात उसकी
कुछ ऐसा इश्क तेरा खानमा खराब नहीं

जो तेरे दर्द से महरूम है यहां उनको
गमे ज़हां भी सुना है कि दस्तयाब नहीं

अभी कुछ और हो इन्सान का लहू पानी
अभी हयात के चेहरे पे आबो-ताब नहीं

दिखा तो देती है बेहतर हयात के सपने
खराब हो के भी ये ज़िन्दगी खराब नहीं

0 टिप्पणियाँ: