सोमवार, मई 04, 2009

दिल में महक रहें हैं

दिल में महक रहें हैं किसी आरज़ू के फूल
पलकों में खिलने वाले हैं शायद लहू के फूल



अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़ हर्फ़
अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तगू के फूल



कलियाँ चटक रही थी कि आवाज़ थी कोई
अब तक सम'अतों में है इक ख़ुश-गुलू के फूल



मेरे लहू का रंग है हर नोक-ए-ख़ार पर
सेहरा में हर तरफ़ है मेरी जुस्तजू के फूल



दीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ में
अब उन के दामनों में भरे हैं रफ़ू के फूल

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