मंगलवार, मई 12, 2009

तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें

तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
तेरी आँखें से ही तख़लीक़ हुई है सच्ची
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है हे हयात



तेरी आँखों से ही खुलते हैं, सवेरों के उफूक़
तेरी आँखों से बन्द होती है ये सीप की रात
तेरी आँखें हैं या सजदे में है मासूम नमाज़ी
तेरी आँखें...



पलकें खुलती हैं तो, यूँ गूँज के उठती है नज़र
जैसे मन्दिर से जरस की चले नमनाक सदा
और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ाँ ख़त्म हुई हो
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें

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