सोमवार, मई 18, 2009

फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं

मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं

माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं


कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर

ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं


सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें

तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं


चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन

क्या ज़ुरूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं


बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं

शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं


शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती

मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं

1 टिप्पणियाँ:

durga nath ने कहा…

बेहतरीन गजलें हैं जनाब। इस संग्रह के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद...