गुरुवार, मई 07, 2009

'मेरी गलियों में आज तुम आओगे' - सौरभ कुणाल

आज जलाया है चिराग हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे
आज धोया है अश्क हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे।

तेरे इंतज़ार में
सुबह से शाम हुई
राह तकती मेरी निगाहें
आज फिर बदनाम हुई।

मिटाई है मैने दिल की खामोशी
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे
आज छुपाई है मन की बेबसी
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे।

गलियों में फिर आज
हर आहट तेरी लगी है
वक्त भी न जाने
क्यों सहमा हुआ है।

आज भुलाई है हर बात हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे
आज दबाया है हर जज्बात हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे।

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