सोमवार, मई 11, 2009

हम्द

नील गगन पर बैठ
कब तक
चाँद सितारों से झाँकोगे



पर्वत की ऊँची चोटी से
कब तक
दुनिया को देखोगे



आदर्शों के बन्द ग्रन्थों में
कब तक
आराम करोगे



मेरा छप्पर टरक रहा है
बनकर सूरज
इसे सुखाओ



खाली है
प्रार्थना
आटे का कनस्तर
कबनकर गेहूँ
इसमें आओ



माँ का चश्मा
टूट गया है
बनकर शीशा
इसे बनाओ



चुप-चुप हैं आँगन में बच्चे
बनकर गेंद
इन्हें बहलाओ



शाम हुई है
चाँद उगाओ
पेड़ हिलाओ
हवा चलाओ



काम बहुत हैं
हाथ बटाओ अल्ला मियाँ
मेरे घर भी आ ही जाओ
अल्ला मियाँ...!

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