सोमवार, मई 18, 2009

कुछ अशआर

1

मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इनको काम दो ,

इसी शहर में एक पुरानी सी इमारत और है ।


2

हम ईंट-ईंट को दौलत से लाल कर देते,

अगर ज़मीर की चिड़िया हलाल कर देते ।


3

दिल ऎसा कि सीधे किए जूते भी बड़ों के

जिद ऎसी कि ख़ुद ताज उठा कर नहीं पहना ।


4

चमक यूँ ही नहीं आती है ख़ुद्दारी के चेहरे पर

अना को हमने दो-दो वक़्त का फाका कराया है।


5

मुनव्वर माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,

जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती ।




6

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर

माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है ।




7

एक निवाले के लिए मैंने जिसे मार दिया,

वह परिन्दा भी कई दिन का भूखा निकला ।

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