बुधवार, जून 03, 2009

कटेगा देखिए दिन

कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ
कि आज धूप नहीं निकली आफ़ताब के साथ



तो फिर बताओ समंदर सदा को क्यूँ सुनते
हमारी प्यास का रिश्ता था जब सराब के साथ



बड़ी अजीब महक साथ ले के आई है
नसीम, रात बसर की किसी गुलाब के साथ



फ़िज़ा में दूर तक मरहबा के नारे हैं
गुज़रने वाले हैं कुछ लोग याँ से ख़्वाब के साथ



ज़मीन तेरी कशिश खींचती रही हमको
गए ज़रूर थे कुछ दूर माहताब के साथ

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