शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

अनैतिकता के चश्मों को बदलकर देखना होगा

अनैतिकता के चश्मों को बदलकर देखना होगा

गलत राहों पे वो कैसे गई ये सोचना होगा


कहाँ तक याद रखिए —खट्टी, मीठी, कड़वी बातों को

हमें आगत की खतिर भी विगत को भूलना होगा


विरोधी दोस्त भी है, रोज मिलता है, इसी कारण

विरोधी के इरादों को समझना —बूझना होगा


बहुत उन्मुक्त हो कर जिन्दगी जीना भी जोखिम है

नदी की धार को अनुशासनों में बाँधना होगा


लड़ाई में उतर कर, भागना तो का—पुरुषता है,

लड़ाई में उतर कर, जीतना या हारना होगा


मनोविज्ञान की भाषा में अपने मन की गाँठों को

अकेले बंद कमरे में किसी दिन खोलना होगा


बचाना है अगर इस मुल्क की उजली विरसत को

हमें अपनी जड़ों की ओर फिर से लौटना होगा

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