गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

घर में रहकर ही नहीं संवाद हम दोनों के बीच

घर में रहकर भी नहीं संवाद हम दोनों के बीच

मौन पसरा है कई हफ्तों से, संबंधों के बीच


फँस गई है बीच में बत्तीस दाँतों के जुबान

फिर भी, चुप रहती नहीं है, जान के खतरों के बीच


सोचता हूँ कोई गुस्सा क्यों जनम लेता नहीं

मुख्य—धारा से अलग होते हुए लोगों के बीच


दिल पे रख कर हाथ , अपनी धड़कनें सुनते रहें

ये जरूरी है बहुत, जीते हुए यंत्रों के बीच


हम इसी कारण, विगत के गाँव तक जाते नहीं

गाँव में घुसते ही ,फँस जाते हैं हम यादों के बीच


बिजलियाँ भी दर्ज करती ही रहीं अपना विरोध,

छेड़खानी पर तुले मेघों के हुड़दंगों के बीच


शेर समकालीन कविता—से न बातूने सही

फिर भी, कह जाते हैं गहरी बात, संकेतों के बीच

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