रविवार, फ़रवरी 21, 2010

एक पैग़ाम

वही मौसम है

बारिश की हंसी

पेड़ों में छन छन गूंजती है

हरी शाख़ें

सुनहरे फूल के ज़ेवर पहन कर

तसव्वुर में किसी के मुस्कराती हैं

हवा की ओढ़नी का रंग फिर हल्का गुलाबी है

शनासा बाग़ को जाता हुआ ख़ुश्बू भरा रस्ता

हमारी राह तकता है

तुलूए-माह की साअत

हमारी मुंतज़िर है

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