शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

जन-कथाओं के नायक बनें

जन-कथाओं के नायक बनें
‘राम’ खुशबू-से व्यापक बनें

मनचली तितलियों के लिए
फूल ही सिर्फ चुंबक बनें

यार, कितना मज़ा आएगा—
हम भी बच्चों की गुल्लक बनें !

जो स्वयं रह न पाए सचेत
आज वे भी सचेतक बनें

उसने मिट्टी के बर्तन गढ़े
हम भी शेरों के सर्जक बनें

मंच के मोह को त्याग कर
आप भी आम-दर्शक बनें !

जिसने मुश्किल में दी प्रेरणा
लोग उसके प्रशंसक बनें.

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