सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

वो तो ख़ुशबू है

वो तो ख़ुशबू है हवाओं में बिखर जायेगा
मसला फूल का है फूल किधर जायेगा



हम तो समझे थे के एक ज़ख़्म है भर जायेगा
क्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जायेगा



वो हवाओं की तरह ख़ानाबजाँ फिरता है
एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जायेगा



वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफ़ाक़त के लिये
मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जायेगा



आख़िर वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा

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