रविवार, फ़रवरी 21, 2010

चेहरा मेरा था निगाहें उस की

चेहरा मेरा था निगाहें उस की
ख़ामुशी में भी वो बातें उस की



मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
शेर कहती हुई आँखें उस की



शोख़ लम्हों का पता देने लगीं
तेज़ होती हुई साँसें उस की



ऐसे मौसम भी गुज़ारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उस की



ध्यान में उस के ये आलम था कभी
आँख महताब की यादें उस की



फ़ैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा
आँधियाँ मेरी बहारें उस की



नीन्द इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उस की



दूर रह कर भी सदा रहती है
मुझ को थामे हुए बाहें उस की

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