सोमवार, मार्च 08, 2010

अपनी औक़ात समझ ख़ुद को पयम्बर न बना

अपनी औक़ात समझ ख़ुद को पयम्बर न बना
देख बच्चों की तरह रेत पे अक्षर न बना

मुझसे मिलना है तो मिल आके फ़क़ीरों की तरह
मुझसे मिलने के लिए ख़ुद् को सिकन्दर न बना

दस्तकें देता रहेगा कोई आतंक सदा
वारदातों की गली में तू कोई घर न बना

प्यार के गीत का ये शब्द बहुत सच्चा है
रूह से छू ले इसे जिस्म का मन्तर न बना.

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