सोमवार, मार्च 15, 2010

प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं

प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं |
सिर्फ आंसू जहाँ इन्सान के काम आते हैं ||

उनकी आँखों से रखे क्या कोई उम्मीद-ए-करम |
प्यास मिट जाये तो गर्दिश में वो जाम आते हैं ||

ज़िन्दगी बन के वो चलते हैं मेरी सांस के साथ |
उनको ऐसे भी कई तर्ज़-ए-खराम आते हैं ||

हम न चाहें तो कभी शाम के साए न ढलें |
हम तड़पे हैं तो सुबहों के सलाम आते हैं ||

कुव्वत-ए-दस्त-ए-तलब का नहीं जिन को इदराक |
तेरे दर से वही बे-नील मराम आते हैं ||

मुंह छुपा लेते हैं ग़म हज़रात-ए-नासेह की तरह |
जब भी मैखाने में रिंदान-ए-कराम आते हैं ||

हम पे हो जाएँ न कुछ और भी रातें भारी |
याद अक्सर वो हमें अब सर-ए-शाम आते हैं ||

छिन गए हम से जो हालात की राहों में क़तील |
उन हसीनों के हमें अब भी पयाम आते हैं ||

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