सोमवार, मार्च 15, 2010

इक परिन्दा आज मेरी छत पे मंडराया तो है

इक परिन्दा आज मेरी छत पे मंडराया तो है
डूबती आँखों में कोई अक्स गहराया तो है

देखिए अंजाम क्या होता है इस आग़ाज़ का
आज इक शीशा किसी पत्थर से टकराया तो है

डूबने वाले को तिनके का सहारा ही बहुत
एक साया-सा धुंधलके में नज़र आया तो है

नेकियाँ इंसान की मरती नहीं मरने के बाद
ये बुज़ुर्गों ने किताबों में भी फ़रमाया तो है

आहटें सुनता रहा हूँ देर तक क़दमों की मैं
कोई मेरे साथ चल कर दूर तक आया तो है

धूप के साए में खु़द को समझाता हूँ यूँ
छत नहीं सर तो क्या सूरज का सरमाया तो है

1 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

आहटें सुनता रहा हूँ देर तक क़दमों की मैं
कोई मेरे साथ चल कर दूर तक आया तो है
bahut khubsurat panktiyan hain