सोमवार, मार्च 15, 2010

जो ख़त लिखे हुए थे किताबों में रह गए

जो ख़त लिखे हुए थे किताबों में रह गए
आँखों में जितने ख़्वाब थे आँखों में रह गए

ऐसी हवा चली कि बुझाती गई चराग़
यानी उजाले क़ैद चराग़ों में रह गए

गु्मनाम हो गए कई चेहरे जो आम थे
जो चेहरे आफ़्त्ताब थे यादों में रह गए

फ़स्ले-ख़िज़ाँ ने तोड़ लीं कलियाँ उमीद की
खिलने से अबके फूल बहारों में रह गए

सुलझा रही थी ज़िन्दगी उलझे हुए सवाल
आई क़ज़ा सवाल क़तारों में रह गए

0 टिप्पणियाँ: