गुरुवार, मार्च 11, 2010

बदली नहीं है अब तक तकदीर रोशनी की

बदली नहीं है अब तक तकदीर रोशनी की।
बन-बन के रह गई है तस्वीर रोशनी की।

ख़ूनी हवा से कह दो बद हरकतों को छोड़े
हालत हुई है अब तो गम्भीर रोशनी की।

उल्लेख तक को तरसे घनघोर अँधेरे भी
लिखी गई है जब-जब तहरीर रोशनी की।

गुमनाम ये अँधेरे आ जाएँ बाज़ वरना
भारी पड़ेगी उनको शमशीर रोशनी की।

तुम दीप तो जलाओ हर ओर अँधेरा है
कुछ तो नज़र में आए तासीर रोशनी की।

0 टिप्पणियाँ: