गुरुवार, मार्च 11, 2010

उदास सी इक शाम

उदास सी इक शाम
खिड़की पे उतर आई है
मौत इक कदम चल कर
कुछ और करीब आई है

चलो अच्‍छा है
अब न सहना होगा
लंबी रातों का दर्द
न अब देह बेवहज
दर्द के बीज बोयेगी

लो मैंने खोल दी है
आसमां की चादर
रंगीन धागों में इक किरण
कफ़न सिल लाई है

उम्‍मीदों के पत्‍ते
गम की बावली में डुबोकर
जिन्‍दगी
वेश्‍या सी मुस्‍कुराई है।

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