मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

गन्ध वेदना

केसर-कुंकुम का लहका दिगन्त है
गंध की अनन्त वेदना वसन्त



चीर उर न और

धुंधलाए वन की

ओ अनचीती बाँसुरी


गीत या अतीत बुझे द्वीप-द्वीप का
मोती अनबिंधा मुंदी-मुंदी सीप का,



धूला-धूला वर्तमान

धूप-तपा तीखा

चीख़-चीख़कर

हँसना-रोना है सीखा


गोपन मन भावी का काँचनार है
कब फूले क्यों मुरझे बेकरार है



उजले दिन

हरख साँझ-झाँवरी

थके-थके पाँव

अभी बहुत दूर गाँव री

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