बुधवार, अप्रैल 08, 2009

फासले ऐसे भी होंगे - अदीम हाश्मी


फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था

सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था ,

वो कि खुशबु की तरह फैला था मेरे चारसू,

मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर उसी की आहट कान में आती रही

झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था,

अक्स तो मौजूद थे पर अक्स तन्हाई के थे

आईना तो था मगर उस में तेरा चेहरा ना था

उसने दर्द भी अपने अलहदा कर दिए

आज मैं रोया तो मेरे साथ वो रोया ना था

ये सभी वीरानियाँ उसके जुदा होने से थी

आँख धुंधलाई हुयी थी शहर धुन्धलाया हुआ ना था,

याद करके और भी तकलीफ होती थी

भूल जाने के सिवा कोई भी चारा न था।

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