मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

रात इक ख्वाब हमने देखा है / बशीर बद्र

रात इक ख्वाब हमने देखा है
फूल की पंखुड़ी को चूमा है

दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उसने लूटा है

हम तो कुछ देर हंस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है

कोई मतलब ज़रूर होगा मियाँ
यूँ कोई कब किसी से मिलता है

तुम अगर मिल भी जाओ तो भी हमें
हश्र तक इंतिज़ार करना है

पैसा हाथों का मैल है बाबा
ज़िंदगी चार दिन का मेला है

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