मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो / बशीर बद्र

ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो
अजनबी जैसे अजनबी तुम हो

अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो

मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो

दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो

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