शुक्रवार, मई 29, 2009

दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं

दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं

वक़्त की बात है क्या होना था, क्या हो गया मैं।


दिल के दरवाज़े को वा रखने की आदत थी मुझे

याद आता नहीं कब किससे जुदा हो गया मैं।


कैसे तू सुनता बड़ा शोर था सन्नाटों का

दूर से आती हुई ऎसी सदा हो गया मैं।


क्या सबब इसका था, ख़ुद मुझ को भी मालूम नहीं

रात ख़ुश आ गई, और दिन से ख़फ़ा हो गया मैं।


भूले-बिसरे हुए लोगों में कशिश अब भी है

उनका ज़िक्र आया कि फिर नग़्मासरा हो गया मैं।


शब्दार्थ :

वा=खुला

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