शनिवार, मार्च 13, 2010

खुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए- दीवाना बरसों से

खुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए- दीवाना बरसों से
कि उस को ढूँढते हैं काबा-ओ-बुतखाना बरसों से

तड़पना है न जलना है न जलकर ख़ाक होना है
ये क्यों सोई हुई है फ़ितरत-ए-परवाना बरसों से

कोई ऐसा नहीं यारब कि जो इस दर्द को समझे
नहीं मालूम क्यों ख़ामोश है दीवाना बरसों से

हसीनों पर न रंग आया न फूलों में बहार आई
नहीं आया जो लब पर नग़मा-ए-मस्ताना बरसों से

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