सोमवार, मई 04, 2009

बात बनती नहीं

बात बनती नहीं ऐसे हालात में
मैं भी जज़्बातमें, तुम भी जज़्बात में



कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म
उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात में



मुफ़लिसी और वादा किसी यार का
खोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात में



जब भी होती है बारिश कही ख़ून की
भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में



मुझको किस्मत ने इसके सिवा क्या दिया
कुछ लकीरें बढा दी मेरे हाथ में



ज़िक्र दुनिया का था, आपको क्या हुआ
आप गुम हो गए किन ख़यालात में



दिल में उठते हुए वसवसों के सिवा
कौन आता है `साग़र' सियह रात में

ख़ुद अपने ज़र्फ का

ख़ुद अपने ज़र्फ का अन्दाज़ा कर लिया जाए
तुम्हारे नाम से इक जाम भर लिया जाए



ये सोचता हूं कि कुछ काम कर लिया जाए
मिले जो आईना तुझ-सा संवर लिया जाए



तुम्हारी याद जहां आते-आते थक जाए
तुम्ही बताओ कहा ऐसा घर लिया जाए



तुम्हारी राह के काटे हो, गुल हो या पत्थर
ये मेरा काम है दामन को भर लिया जाए



हमारा दर्द न बाटो मगर गुज़ारिश है
हमारे दर्द को महसूस कर लिया जाए



ये बात अपनी तबीयत की बात होती है
किसी के बात का कितना असर लिया जाए



शऊरे-वक़्त अगर नापना हो ए `साग़र'
ख़ुद अपने आप को पैमाना कर लिया जाए

कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा

कहता हूँ महब्बत है ख़ुदा सोच समझकर
ये ज़ुर्म अगर है तो बता सोच समझकर



कब की मुहब्बत ने ख़ता सोच समझकर
कब दी ज़माने ने सज़ा सोच समझकर



वो ख़्वाब जो ख़ुशबू की तरह हाथ न आए
उन ख़्वाबों को आंखो में बसा सोच समझकर



कल उम्र का हर लम्हा कही सांप न बन जाए
मांगा करो जीने की दुआ सोच समझकर



आवारा बना देंगे ये आवारा ख़यालात
इन ख़ाना बदोशों को बसा सोच समझकर



ये आग जमाने में तेरे घर से न फैले
दीवाने को महफ़िल से उठा सोच समझकर



भर दी जमाने ने बहुत तलख़ियां इसमें
'साग़र' की तरफ़ हाथ बढा सोच समझकर

इस शहर-ए-खराबी में

इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे

ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पा_इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे

हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे

हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे

कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे

और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना

और सब भूल गए हर्फे-सदाक़त लिखना
रह गया काम हमारा ही बगावत लिखना

न सिले की न सताइश की तमन्ना हमको
हक में लोगों के हमारी तो है आदत लिखना.

हम ने तो भूलके भी शह का कसीदा न लिखा
शायद आया इसी खूबी की बदौलत लिखना.

दह्र के ग़म से हुआ रब्त तो हम भूल गए
सर्व-क़ामत की जवानी को क़यामत लिखना.

कुछ भी कहते हैं कहें शह के मुसाहिब 'जालिब'
रंग रखना यही अपना, इसी सूरत लिखना

दिल की बात लबों पर लाकर

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं|

बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली,
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं|

एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं|

जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए,
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं|

वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था,
उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं

ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम

ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम.
लेकिन ये क्या कि शहर तेरा छोड़ जाएँ हम.

मुद्दत हुई है कूए बुताँ की तरफ़ गए,
आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम.

शायद बकैदे-जीस्त ये साअत न आ सके
तुम दास्ताने-शौक़ सुनो और सुनाएँ हम.

उसके बगैर आज बहोत जी उदास है,
'जालिब' चलो कहीं से उसे ढूँढ लायें हम.

हर ख़ुशी में कोई कमी सी है

हर ख़ुशी में कोई कमी सी है
हँसती आँखों में भी नमी सी है



दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है



किसको समझायेँ किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है



ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी सी है



कह गए हम किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी सी है



हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी सी है

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी



कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी



मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी



जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी



मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी




शफ़ा=आराम, रोग से मुक्ति

हम तो बचपन में भी अकेले थे

हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे



एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे



थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे



आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं
उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे



ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती
मौत के अपने भी सौ झमेले थे

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है



ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है



ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हम-दम होता है



ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है



ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है

शाम होने को है

शाम होने को है

लाल सूरज समन्‍दर में खोने को है

और उसके परे कुछ परिन्‍दे कतारें बनाए

उन्‍हीं जंगलों को चले,

जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोसले

ये परिन्‍दे वहीं लौट कर जाएँगे, और सो जाएँगे

हम ही हैरान हैं, इस मकानों के जंगल में

अपना कोई भी ठिकाना नहीं

शाम होने को है

हम कहाँ जाएँगे

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी



कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी



बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

ये तेरा घर ये मेरा घर

ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो अगर
तो पहले आके माँग मेरी नज़र तेरी नज़र
ये घर बहुत हसीन है



न बादलों की चाँव में न चाँदनी के गाँव में
न फूल जैसे रास्ते बने हैं इसके वास्ते
मगर ये घर अजीब है ज़मीन के क़रीब है
ये ईँट पत्थरों का घर हमारी हसरतों का घर



जो चाँदनी नहीं तो क्या ये रोशनी है प्यार की
दिलों के फूल खिल गये तो फ़िक्र क्या बहार की
हमारे घर ना आयेगी कभी ख़ुशी उधार की
हमारी राहतों का घर हमारी चाहतों का घर



यहाँ महक वफ़ाओं की है क़हक़हों के रंग है
ये घर तुम्हारा ख़्वाब है ये घर मेरी उमंग है
न आरज़ू पे क़ैद है न हौसले पर जंग है
हमारे हौसले का घर हमारी हिम्मतों का घर

ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब

ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब



सब की ख़तिर है यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब



भूल के सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ सब को होगा याद सब



सब को दावा-ए-वफ़ा सब को यक़ीं
इस अदकारी में हैं उस्ताद सब



शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब



चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब



तल्ख़ियाँ कैसे न हो अशार में
हम पे जो गुज़री है हम को याद सब

यही हालात इब्तदा से रहे

यही हालात इब्तदा से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे



बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा से रहे



इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे



बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे



उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे



ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हम को देखो कि पी के प्यासे रहे

मैनें दिल से कहा

मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला
तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या
है ये क्या सिलसिला
ऐ दीवाने बता



मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
धड़कनों में छुपी
कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है
कैसा ये साज़ है
कैसी ये बात है
कैसा ये राज़ है
ऐ दीवाने बता



मेरे दिल ने कहा
जब से कोई मिला
चाँद तारे फ़िज़ा
फूल भौंरे हवा
ये हसीं वादियाँ
नीला ये आसमाँ
सब है जैसे नया
मेरे दिल ने कहा

मैं भूल जाऊँ अब

मैं भूल जाऊँ अब यही मुनासिब है
मगर भूलना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ
कमबख़्त
भुला सका न ये सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात
जो मैं कह नहीं सका तुम से
वो एक रब्त
वो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब
जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं

मैं और मेरी आवारगी

फिरते हैं कब से दरबदर अब इस नगर अब उस नगर
एक दूसरे के हमसफ़र मैं और मेरी आवारगी
ना आशना हर रहगुज़र ना मेहरबाँ है एक नज़र
जायें तो अब जायें किधर मैं और मेरी आवारगी



हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बरबाद थे
बिफ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर थे दिलशाद थे
वो चाल ऐसि चल गया हम बुझ गये दिल जल गया
निकले जला के अपना घर मैं और मेरी आवारगी



वो माह-ए-वश वो माह-ए-रूह वो माह-ए-कामिल हूबहू
थीं जिस की बातें कूबकू उस से अजब थी गुफ़्तगू
फिर यूँ हुआ वो खो गई और मुझ को ज़िद सी हो गई
लायेंगे उस को ढूँड कर मैं और मेरी आवारगी



ये दिल ही था जो सह गया वो बात ऐसी कह गया
कहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गया
जब कह कर वो दिलबर गया ती लिये मैं मर गया
रोते हैं उस को रात भर मैं और मेरी आवारगी



अब ग़म उठायें किस लिये ये दिल जलायें किस लिये
आँसू बहायें किस लिये यूँ जाँ गवायें किस लिये
पेशा न हो जिस का सितम ढूँढेगे अब ऐसा सनम
होंगे कहीं तो कारगर मैं और मेरी आवारगी



आसार हैं सब खोट के इम्कान हैं सब चोट के
घर बन्द हैं सब कोट के अब ख़त्म है सब टोटके
क़िस्मत का सब ये खेल है अंधेर ही अंधेर है
ऐसे हुए हैं बेअसर मैं और मेरी आवारगी



जब हमदम-ओ-हमराज़ था तब और ही अन्दाज़ था
अब सोज़ है तब साज़ था अब शर्म है तब नाज़ था
अब मुझ से हो तो हो भी क्या है साथ वो तो वो भी क्या
एक बेहुनर एक बेसबर मैं और मेरी आवारगी

मुझको यक़ीं है सच कहती थीं

मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं



इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया
इक वो दिन दिन जब पेड़ की शाख़े बोझ हमारा सहती थीं



इक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
इक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं



इक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं
इक वो दिन जब 'आओ खेलें' सारी गलियाँ कहती थीं



इक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
इक वो दिन जब शाख़ों की भी पलकें बोझल रहती थीं



इक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं
इक वो दिन जब दिल में सारी भोली बातें रहती थीं



इक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है
इक वो घर जिसमें मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं

मिसाल इसकी कहाँ है

मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में



वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में



जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम है शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में



लतीफ़ था वो तख़ैय्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक
गवा दिया हमने ही उसे आज़माने में



समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में



झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में

प्‍यास की कैसे लाए ताब कोई

प्‍यास की कैसे लाए ताब कोई

नहीं दरिया तो हो सराब कोई


रात बजती थी दूर शहनाई

रोया पीकर बहुत शराब कोई


कौन सा ज़ख्‍म किसने बख्‍शा है

उसका रखे कहाँ हिसाब कोई


फिर भी मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की

आने वाला है फिर अज़ाब कोई

प्यार मुझसे जो किया तुमने

प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी
मेरे हालत की आंधी में बिखर जओगी



रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ
ख्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ
मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी



क्यूं मेरे साथ कोइ और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनओगी तो पछताओगी



एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने
अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने
ज़िन्दगी तुमको सुनायेगी फ़साने कितने
क्यूं समझती हो मुझे भूल नही पाओगी

दुख के जंगल में फिरते हैं

दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग



जीवन भर हमने खेल यही होते देखा
धीरे धीरे जीती दुनिया धीरे धीरे हारे लोग



इस नगरी में क्यों मिलती है रोटी सपनों के बदले
जिनकी नगरी है वो जाने हम ठहरे बंजारे लोग

दुख के जंगल में फिरते हैं

दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग



जीवन भर हमने खेल यही होते देखा
धीरे धीरे जीती दुनिया धीरे धीरे हारे लोग



इस नगरी में क्यों मिलती है रोटी सपनों के बदले
जिनकी नगरी है वो जाने हम ठहरे बंजारे लोग

दिल में महक रहें हैं

दिल में महक रहें हैं किसी आरज़ू के फूल
पलकों में खिलने वाले हैं शायद लहू के फूल



अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़ हर्फ़
अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तगू के फूल



कलियाँ चटक रही थी कि आवाज़ थी कोई
अब तक सम'अतों में है इक ख़ुश-गुलू के फूल



मेरे लहू का रंग है हर नोक-ए-ख़ार पर
सेहरा में हर तरफ़ है मेरी जुस्तजू के फूल



दीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ में
अब उन के दामनों में भरे हैं रफ़ू के फूल

दर्द के फूल भी खिलते हैं

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं



उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुपचाप गुज़र जाते हैं



रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं



नर्म आवाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते हैं

दर्द अपनाता है पराए कौन

दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन



कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन



वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन



अब सुकूँ है तो भूलने में है
लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन



आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन

तुमको देखा तो ये ख़याल आया

तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया



आज फिर दिल ने एक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया



तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया



हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया

तमन्‍ना फिर मचल जाए

तमन्‍ना फिर मचल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

यह मौसम ही बदल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया

ये गम दिल से निकल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे

ज़माना मुझसे जल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्‍से काम की बातें

बला हर एक टल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

जाते जाते वो मुझे

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया



उस से मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया



सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक करती बादबानी दे गया



ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया

क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा

क्‍यों डरें जिन्‍देगी में क्‍या होगा

कुछ ना होगा तो तजरूबा होगा


हँसती आँखों में झाँक कर देखो

कोई आँसू कहीं छुपा होगा


इन दिनों ना उम्‍मीद सा हूँ मैं

शायद उसने भी ये सुना होगा


देखकर तुमको सोचता हूँ मैं

क्‍या किसी ने तुम्‍हें छुआ होगा

क्यूँ ज़िन्दगी की राह में

क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए



ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए



पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए

इक पल गमों का दरिया

इक पल गमों का दरिया, इक पल खुशी का दरिया

रूकता नहीं कभी भी, ये जिन्‍देगी का दरिया

आँखें थीं वो किसी की या ख्‍वाब के ज़ंजीरे

आवाज़ थी किसी की या रागिनी का दरिया

इस दिल की वादियों में अब खाक उड़ रही है

बहता यहीं था पहले इक आशिकी का दरिया

किरनों में हैं ये लहरें, या लहरों में हैं किरनें

दरिया की चाँदनी है, या चाँदनी का दरिया

आप भी आइए

आप भी आइए, हम को भी बुलाते रहिए

दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।

ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको

ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।

वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,

ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।

शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,

कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।

आज मैंने अपना फिर सौदा किया

आज मैंने अपना फिर सौदा किया

और फिर मैं दूर से देखा किया

जिन्‍दगी भर मेरे काम आए असूल

एक एक करके मैं उन्‍हें बेचा किया

कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी

तुम से क्‍या कहते कि तुमने क्‍या किया

हो गई थी दिल को कुछ उम्‍मीद सी

खैर तुमने जो किया अच्‍छा किया

अब अगर आओ तो

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना

सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं

दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं

ये हँसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना

प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं

चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं

तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई

मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई

तुम कांई रस्‍म निभाने के लिए मत आना

मैं और मेरी तन्हाई

आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तनहाई
जाएँ तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे रुसवाई



ये फूल से चहरे हैं हँसते हुए गुलदस्ते
कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रस्ते
राहें हैं तमाशाई रही भी तमाशाई



मैं और मेरी तन्हाई



अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे
कातिल नज़र आती है दुनिया की हवा जैसे
रोटी है मेरे दिल पर बजती हुई शहनाई



मैं और मेरी तन्हाई



आकाश के माथे पर तारों का चरागाँ है
पहलू में मगर मेरे जख्मों का गुलिस्तां
है आंखों से लहू टपका दामन में बहार आई



मैं और मेरी तन्हाई



हर रंग में ये दुनिया सौ रंग दिखाती है
रोकर कभी हंसती है हंस कर कभी गाती है
ये प्यार की बाहें हैं या मौत की अंगडाई



मैं और मेरी तन्हाई

मां है रेशम के कारखाने में

मां है रेशम के कारखाने में

बाप मसरूफ सूती मिल में है

कोख से मां की जब से निकला है

बच्चा खोली के काले दिल में है


जब यहाँ से निकल के जाएगा

कारखानों के काम आयेगा

अपने मजबूर पेट की खातिर

भूक सर्माये की बढ़ाएगा


हाथ सोने के फूल उगलेंगे

जिस्म चांदी का धन लुटाएगा

खिड़कियाँ होंगी बैंक की रोशन

खून इसका दिए जलायेगा


यह जो नन्हा है भोला भाला है

खूनीं सर्माये का निवाला है

पूछती है यह इसकी खामोशी

कोई मुझको बचाने वाला है!

तू मुझे इतने प्यार से मत देख

तू मुझे इतने प्यार से मत देख
तेरी पलकों के नर्म साये में
धूप भी चांदनी सी लगती है
और मुझे कितनी दूर जाना है
रेत है गर्म, पाँव के छाले
यूँ दमकते हैं जैसे अंगारे
प्यार की ये नज़र रहे, न रहे
कौन दश्त-ए-वफ़ा में जाता है
तेरे दिल को ख़बर रहे न रहे
तू मुझे इतने प्यार से मत देख

मैं जहाँ तुम को बुलाता हूँ वहाँ तक आओ

मैं जहाँ तुम को बुलाता हूँ वहाँ तक आओ
मेरी नज़रों से गुज़र कर दिल-ओ-जाँ तक आओ



फिर ये देखो कि ज़माने की हवा है कैसी
साथ मेरे मेरे फ़िर्दौस-ए-जवाँ तक आओ



तेग़ की तरह चलो छोड़ के आग़ोश-ए-नियाम
तीर की तरह से आग़ोश-ए-कमाँ तक आओ



फूल के गिर्द फिरो बाग़ में मानिन्द-ए-नसीम
मिस्ल-ए-परवाना किसी शम-ए-तपाँ तक आओ



लो वो सदियों के जहन्नुम की हदें ख़त्म हुई
अब है फ़िर्दौस ही फ़िर्दौस जहाँ तक आओ



छोड़ कर वहम-ओ-गुमाँ हुस्न-ए-यकी तक पहुँचो
पर यक़ीं से भी कभी वहम-ओ-गुमाँ तक आओ

मैं हूँ सदियों का तफ़क्कुर

मैं हूँ सदियों का तफ़क्कुर1 मैं हूं क़र्नों का2 ख़्याल,
मैं हूं हमआग़ोश अज़ल से3 मैं अबद से हमकिनार4।

मेरे नग़्मे क़ैदे-माहो-साल से5 आज़ाद हैं,
मेरे हाथों में है लाफ़ानी6 तमन्ना का सितार।

नक़्शे-मायूसी में7 भर देता हूं उम्मीदों का रंग,
मैं अ़ता8 करता हूं शाख़े-आरजूं9 को बर्गो-बार10।

चुन लिए हैं बाग़े-इन्सानी से अरमानों के फूल,
जो महकते ही रहेंगे मैंने गूँथे हैं वो हार।

आ़र्ज़ी1 जलवों को दी है ताबिशे-हुस्ने-दवाम12।
मेरी नज़रों में है रोशन आदमी की रहगुज़ार13।



1.मनन 2. सदियों का 3. आदि काल को अपने बाहुपाश में लिए हुए 4. अन्त काल के गले मिला हुआ 5. वर्षों और महीनों की क़ैद से 6. अमर 7. निराशा के रेखा-चित्र में 8. प्रदान आकांक्षा रुपी टहनी को 10. फल-फूल 11. अस्थायी 12. अमर सुन्दरता की चमक 13. पथ

शिकस्त-ए-शौक को तामील-ए-आरजू कहिये

शिकस्त-ए-शौक को तामील-ए-आरजू कहिये
के तिश्नगी को भी पैमान-ओ-सुबू कहिये



ख़याल-ए-यार को दीजिये विसाल-ए-यार का नाम
शब-ए-फिराक को गेसू-ए-मुश्कबू कहिये



चराग-ए-अंजुमन हैरत-ओ-नजारा हैं
लालारू जिनहें अब बाब-ए-आरजू कहिये



शिकायतें भी बहुत हैं हिकायतें भी बहुत
मजा तो जब है के यारों के रु-ब-रू कहिये



महक रही है गज़ल जिक्र-ए-जुल्फ-ए-खुबाँ से
नसीम-ए-सुब्ह की मानिंद कू-ब-कू कहिये



ऐ हुक्म कीजिये फिर खंजरों की दिलजारी
जहाँ-ए-जख्म से अफसाना-ए-गुलू कहिये



जुबाँ-ए-शोख से करते है पुरशिश-ए-अहवाल
और उसके बाद ये कहते हैं आरजू कहिये



है जख्म जख्म मगर क्यूँ ना जानिये उसे फूल
लहू लहू है मगर क्यूँ उसे लहू कहिये



जहाँ जहाँ भी खिजाँ है वहीं वहीं है बहार
चमन चमन यही अफसाना-ए-नुमू कहिये



जमीँ को दीजिये दिल-ए-मुद्दा तलब का पयाम
खिजाँ को वसत-ए-दामाँ-ए-आरजू कहिये



साँवरिये गज़ल अपनी बयाँ-ए-गालिब से
जबाँ-ए-मीर में भी हाँ कभू कभू कहिये



मगर वो हर्फ धड़कने लगे जो दिल की तरह
मगर वो बात जिसे अपनी गुफ्तगू कहिये



मगर वो आँख के जिसमें निगाह अपनी हो
मगर वो दिल जिसे अपनी जुस्तजू कहिये



किसी के नाम पे सरदार खो चुके हैं जिसे
उसी को अह्ल-ए-तमन्ना की आबरू कहिये

सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल

सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल
रंग बन कर बिखर गया कोई



गर्दिश-ए-ख़ूं रगों में तेज़ हुई
दिल को छूकर गुज़र गया कोई



फूल से खिल गये तसव्वुर में
दामन-ए-शौक़ भर गया कोई