मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

कतील शिफ़ाई की बेहतरीन ग़ज़ल

अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
मैं हूं तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सादादिली मार न डाले मुझको
मैं समंदर भी हूं मोती भी हूं गोतज़ान भी
कोई भी नाम मेरा लेके बुलाले मुझको
तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गवां ले मुझको
कल की बात और है मैं अब सा रहूं या न रहूं
जितना जी चाहे तेरा आज सताले मुझको

ख़ुद को मैं बांट न डालूं कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको
मैं जो कांटा हूं तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूं अगर फूल तो जूड़े में सजाले मुझको
मैं खुले दर के किसी घर का हूं समां प्यार
तू दबे पांव कभी आके चुराले मुझको
तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलाने वालो मुझको
वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊं
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको
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अपने होठों पे सजाना चाहता हूं
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं
कोई आंसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूं
थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूं
छा रहा है सारी बस्ती में अंधेरा
रौशनी हो घर जलाना चाहता हूं
आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आए
मौत भी मैं शायराना चाहता हूं
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इक-इक पत्थर जोड़ के मैंने जो दीवार बनाई है
झांखू उस के पीछे तो स्र्स्वाई ही स्र्स्वाई है
यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूं
आंखें मेरी अपनी हैं पर उन में नींद पराई है
देख रहे हैं सब हैरत से नीले-नीले पानी को
पूछे कौन समंदर से तुझ में कितनी गहराई है
आज हुआ मालूम मुझे इस शहर के चंद सयानों से
अपनी राह बदलते रहना सबसे बड़ी दानाई है
तोड़ गए पैमान-ए-वफ़ा इस दौर में कैसे कैसे लोग
ये मत सोच ‘क़तील’ कि बस इक यार तेरा हरजाई है
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किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह
बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह
किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह
कभी न सोचा था हमने ‘क़तील’ उस के लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
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मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम
आंसू छलक छलक के सताएंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम
जब दूरियों की आग दिलों को जलाएगी
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम
गर दे गया दगा़ हमें तूफ़ान भी ‘क़तील’
साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम
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परेशां रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ
हंसों और हंसते-हंसते डूबते जाओ ख़लाओं में
हमें ये रात भारी है सितारों तुम तो सो जाओ
तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हम ने हारी है सितारों तुम तो सो जाओ
कहे जाते हो रो-रोके हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राज़दारी है सितारों तुम तो सो जाओ
हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाआ
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प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं
बेस्र्ख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी
एक मु त से हमें उस ने सताया भी नहीं
रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं
सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं
तुम तो शायर हो ‘क़तील’ और वो इक आम सा शख्स़
उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं
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सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूं मैं
लेकिन ये सोचता हूं कि अब तेरा क्या हूं मैं
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महिफ़लों में तुझे ढूंढता हूं मैं
मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूं ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कबसे गड़ा हूं मैं
किस-किसका नाम लूं ज़बां पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख्स़ नया देखता हूं मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूं मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूं मैं
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है ‘क़तील’
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूं मैं
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तुम पूछो और मैं न बताऊं ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं
किस को ख़बर थी सांवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं
माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं
ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आंसू पोंछ भी लो
जिसमें कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं
मेरे गम़गीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान ‘क़तील’
जैसे मैं पत्थर हूं मेरे सीने में जज्बात नहीं
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तुम्हारी अन्जुमन से उठ के दीवाने कहां जाते
जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहां जाते
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मैख़ाना
तो ठुकराए हुए इन्सान ख़ुदा जाने कहां जाते
तुम्हारी बेस्र्ख़ी ने लाज रख ली बादाख़ाने की
तुम आंखों से पिला देते तो पैमाने कहां जाते
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वर्ना हम ज़माने भर को समझाने कहां जाते
‘क़तील’ अपना मुक़र गम़ से बेगाना अगर होता
फिर तो अपने-पराए हमसे पहचाने कहां जाते

होंठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते / बशीर बद्र

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते

पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते

दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते

अहबाब[१] भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते

शब्दार्थ:

↑ दोस्त, मित्र

हमारा दिल / बशीर बद्र

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए

मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए

अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए

सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में / बशीर बद्र

सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में

पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गये सवालों में

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गये उजालों में

सोचा नहीं अछा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं / बशीर बद्र

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं

सुबह का झरना / बशीर बद्र

सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़मोश गहरी औरतें



सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें



शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें



सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें



इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का आतिश-फिशान
किं पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें

सुन ली जो ख़ुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो / बशीर बद्र

सुन ली जो ख़ुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो
दरवाज़े पे दस्तक की सदा तुम तो नहीं हो

सिमटी हुई शर्माई हुई रात की रानी
सोई हुई कलियों की हया तुम तो नहीं हो

महसूस किया तुम को तो गीली हुई पलकें
भीगे हुये मौसम की अदा तुम तो नहीं हो

इन अजनबी राहों में नहीं कोई भी मेरा
किस ने मुझे यूँ अपना कहा तुम तो नहीं हो

सिसकते आब में किस की सदा है / बशीर बद्र

सिसकते आब में किस की सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
ख़ुदा चरो तरफ़ बिखरा हुआ है

समेटो और सीने में छुपा लो
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है

पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनेहरा हो चला है

हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है

हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है

मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है

साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं / बशीर बद्र

साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं
इक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं

देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं

इस की भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं
रोज मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं

आदमी क्या है गुजरते वक्त की तसवीर है
जाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं

किस ने किस का नाम ईंट पे लिखा है खून से
इश्तिहारों से ये दीवारें छुपा सकते नहीं

उस की यादों से महकने लगता है सारा बदन
प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं

राज जब सीने से बाहर हो गया अपना कहाँ
रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं

शहर में रहते हुए हमको जमाना हो गया
कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं

पत्थरों के बर्तनों में आँसू को क्या रखें
फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीं

सर से चादर बदन से क़बा ले गई / बशीर बद्र

सर से चादर बदन से क़बा ले गई
ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई

मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई

मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई

हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई

चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई

मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई

सर पे साया सा दस्त-ए-दुआ याद है / बशीर बद्र

सर पे साया सा दस्त-ए-दुआ याद है
अपने आँगन में इक पेड़ था याद है

जिस में अपनी परिंदों से तश्बीह थी
तुम को स्कूल की वो दुआ याद है

ऐसा लगता है हर इम्तहाँ के लिये
ज़िन्दगी को हमारा पता याद है

मैकदे में अज़ाँ सुन के रोया बहुत
इस शराबी को दिल से ख़ुदा याद है

मैं पुरानी हवेली का पर्दा मुझे
कुछ कहा याद है कुछ सुना याद है

सब कुछ खाक हुआ है लेकिन / बशीर बद्र

सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है



बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूं
हाथों में जलता सूरज है, दिल में रात की रानी है



दफ़न हुए रातों के किस्से इक चाहत की खामोशी है
सन्नाटों की चादर ओढे ये दीवार पुरानी है



उसको पा कर इतराओगे, खो कर जान गंवा दोगे
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी जानी है



दिल अपना इक चांद नगर है, अच्छी सूरत वालों का
शहर में आ कर शायद हमको ये जागीर गंवानी है



तेरे बदन पे मैं फ़ूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं
जिस लम्हे का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है

शबनम के आँसू फूल पर / बशीर बद्र

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
आँखें मेरी भीगी हुईं चेहरा तेरा उतरा हुआ

अब इन दिनों मेरी ग़ज़ल ख़ुश्बू की इक तस्वीर है
हर लफ़्ज़ गुंचे की तरह खिल कर तेरा चेहरा हुआ

मंदिर गये मस्जिद गये पीरों फ़कीरों से मिले
इक उस को पाने के लिये क्या क्या किया क्या क्या हुआ

शायद इसे भी ले गये अच्छे दिनों के क़ाफ़िले
इस बाग़ में इक फूल था तेरी तरह हँसता हुआ

अनमोल मोती प्यार के, दुनिया चुरा के ले गई
दिल की हवेली का कोई दरवाज़ा था टूटा हुआ

वो महकती पलकों की ओट / बशीर बद्र

वो महकती पलकों की ओट से कोई तारा चमका था रात में
मेरी बंद मुठ्ठी ना खोलिये वही कोहीनूर था हाथ में

मैं तमाम तारे उठा-उठा कर ग़रीबों में बाँट दूँ
कभी एक रात वो आसमाँ का निज़ाम[१] दे मेरे हाथ में

अभी शाम तक मेरे बाग़ में कहीं कोई फूल खिला न था
मुझे खुशबुओं में बसा गया तेरा प्यार एक ही रात में

तेरे साथ इतने बहुत से दिन तो पलक झपकते गुज़र गये
हुई शाम खेल ही खेल में गई रात बात ही बात में

कभी सात रंगों का फूल हूँ, कभी धूप हूँ, कभी धूल हूँ
मैं तमाम कपडे बदल चुका तेरे मौसमों की बरात में

शब्दार्थ:

↑ व्यवस्था

वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा / बशीर बद्र

वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
अभी मैं ने देखा है चाँद भी किसी शाख़-ए-गुल पे झुका हुआ



जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ



कई मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खड़ा हुआ



मुझे हादसों ने सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मेरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहन्दियों से रचा हुआ



वही ख़त के जिस पे जगह जगह दो महकते होंठों के चाँद थे
किसी भूले-बिसरे से ताक़ पर तह-ए-गर्द होगा दबा हुआ



वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लान भी
मगर उस दरीचे से पूछना वो दरख़त अनार का क्या हुआ



मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चराग़ कोई चराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे / बशीर बद्र

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब[१] समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे

इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे

मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे

भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब[२] समझते होंगे

शब्दार्थ:

1.↑ शैली
2.↑ बुरा

वही ताज है वही तख़्त है / बशीर बद्र

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है

मैं ये मानता हूँ मेरे दिये तेरी आँधियोँ ने बुझा दिये
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

रात के साथ रात लेटी थी / बशीर बद्र

रात के साथ रात लेटी थी
सुबह एक पालने में रोती थी

याद की बर्फपोश टहनी पर
एक गिलहरी उदास बैठी थी

मैं ये समझा के लौट आए तुम
धूप कल इतनी उजली उजली थी

कितने शादाब, कितने दिलकश थे
जब नदी रोज हमसे मिलती थी

एक कुर्ते के बाएँ कोने पर
प्यार की सुर्ख तितली बैठी थी

कितनी हल्की कमीज़ पहने हुए
सुबह अंगड़ाई लेके बैठी थी

राख हुई आँखों की / बशीर बद्र

राख हुई आँखों की शम्एं, आँसू भी बेनूर हुए,
धीरे धीरे मेरा दिल पत्थर सा होता जाता है।



अपने दिल है एक परिन्दा जिसके बाजू टूटे हैं,
हसरत से बादल को देखे बादल उड़ता जाता है।



सारी रात बरसने वाली बारीश का मैं आँचल हूँ,
दिन में काँटों पर फैलाकर मुझे सुखाया जाता है।



हमने तो बाजार में दुनिया बेची और खरीदी है,
हमको क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है।

ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है / बशीर बद्र

ये चिराग़ बेनज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है
अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है

वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ
वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है

कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है

मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में
वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है

मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मईन[१] रहा हूँ
तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर[२] है मेरा प्यार जाविदाँ[३] है

उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है

शब्दार्थ:

1.↑ संतुष्ट
2.↑ जो बदले नहीं
3.↑ अमर

ये चांदनी भी जिन को छूते हुए डरती है / बशीर बद्र

ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है

आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है

आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं ये पंछी जब शाख़ लचकती है

ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है

याद किसी की चांदनी बन कर / बशीर बद्र

याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है
याद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है

रात की रानी सहन-ए-चमन में गेसू खोले सोती है
रात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है

तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे
उस के जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है

पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैं
हर बस्ती में मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इसी लिये मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है

मोम की ज़िन्दगी घुला करना / बशीर बद्र

मोम की ज़िन्दगी घुला करना
कुछ किसी से न तज़करा करना

मेरा बचपन था आईने जैसा
हर खिलौने का मुँह तका करना

चेहरा चेहरा मेरी किताबें हैं
पढ़ने वालो मुझे पढ़ा करना

ये रिवायत बहुत पुरानी है
नींद में रेत पर चला करना

रास्ते में कई खंडहर होंगे
शह-सवारो वहाँ रुका करना

जब बहुत हँस चुको तो चेहरे को
आँसुओं से भी धो लिया करना

फूल शाख़ों के हों कि आँखों के
रास्ते रास्ते चुना करना

मैं भी शायद बुरा नहीं होता / बशीर बद्र

कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

मैं भी शायद बुरा नहीं होता
वो अगर बेवफ़ा नहीं होता

बेवफ़ा बेवफ़ा नहीं होता
ख़त्म ये फ़ासला नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज-कल दिन में क्या नहीं होता

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

मैंने तेरी आँखों में पढ़ा / बशीर बद्र

मैंने तेरी आँखों में पढ़ा अल्लाह ही अल्लाह
सब भूल गया याद रहा अल्लाह ही अल्लाह।



फूलों में बसीं चांदनी रातों की नमाजें
शबनम में सितारों की दुआ, अल्लाह ही अल्लाह।



इक फूल ने कोनेन1 की दौलत मुझे दे दी
आँसू से हथेली पे लिखा अल्लाह ही अल्लाह।



हम लोग इसी पाक समन्दर की लहरें है
ला हाथ मेरे हाथ में ला अल्लाह ही अल्लाह।



इक नाम की तख्ती का शौक हुआ था
पानी पे हवाओं ने लिखा अल्लाह ही अल्लाह।



बादल की इबादत है, बरसता हुआ पानी
आँसू की गजल हम्दोसना2 अल्लाह ही अल्लाह।



पेड़ों की सफें3 तेरे फरिश्तों की किताबें
खामोश पहाड़ों की निदा4 अल्लाह ही अल्लाह।



वो सूरे यासीन5 के काफूर की खुश्बू
महके हुए फूलों की रिदा6 अल्लाह ही अल्लाह।



1-दोनो जहाँ
2-प्रार्थना या तारीफ
3-कतारें
4-आवाज
5-कुरान शरीफ आयात
6-चादर

मैं कब कहता हूँ / बशीर बद्र

मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है



खुदा इस शहर को महफ़ूज़ रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है



मैं हर लम्हे मे सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है



मेरा दिल बारिशों मे फूल जैसा
ये बच्चा रात मे रोता बहुत है



वो अब लाखों दिलो से खेलता है
मुझे पहचान ले, इतना बहुत है

मेरे साथ तुम भी दुआ करो / बशीर बद्र

मेरे साथ तुम भी दुआ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा न हो

मेरे घर से रात की सेज तक वो इक आँसू की लकीर है
ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो इसी तरफ़ से गया न हो

सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं, आसमाँ है झुका हुआ
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले कर खड़ा न हो

वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों की किताब में
जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो

वो विसाल हो के फ़िराक़ हो तेरी आग महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ बन के जला न हो

मुझे यूँ लगा कि ख़ामोश ख़ुश्बू के होँठ तितली ने छू लिये
इन्ही ज़र्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो

इसी एहतियात में मैं रहा, इसी एहतियात में वो रहा
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी और को ये पता न हो

मुस्कुराती हुई धनक है वही / बशीर बद्र

मुस्कुराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही

फूल कुम्हला गये उजालों के
साँवली शाम में नमक है वही

अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही

कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही

प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे / बशीर बद्र

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिये उस की आँखों के जलते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी
किराये के घर थे बदलते रहे

सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे

लिपट के चराग़ों से वो सो गये
जो फूलों पे करवट बदलते रहे

मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो / बशीर बद्र

मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो

इक टहनी पर चाँद टिका था
मैं ये समझा तुम बैठे हो

उजले उजले फूल खिले थे
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो

मुझ को शाम बता देती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो

तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे
बच्चों सी बातें करते हो

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं / बशीर बद्र

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं

हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं

ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं

उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा / बशीर बद्र

मान मौसम का कहा, छाई घटा, जाम उठा
आग से आग बुझा, फूल खिला, जाम उठा

पी मेरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँ
भूल जा शिकवा-गिला, हाथ मिला, जाम उठा

हाथ में जाम जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जायेगा क़िस्मत का लिखा, जाम उठा

एक पल भी कभी हो जाता है सदियों जैसा
देर क्या करना यहाँ, हाथ बढा़, जाम उठा

प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ
मैकदे में कोई छोटा न बड़ा, जाम उठा

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली / बशीर बद्र

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली

तुम मुहब्बत को खेल कहते हो
हम ने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली

उस ने देखा बड़ी इनायत से
आँखों आँखों में बात भी कर ली

आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी कर ली

हम नहीं जानते चिराग़ों ने
क्यों अंधेरों से दोस्ती कर ली

धड़कनें दफ़्न हो गई होंगी
दिल में दीवार क्यों खड़ी कर ली

भीगी हुई आँखों का ये मन्ज़र न मिलेगा / बशीर बद्र

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा

इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें
बाज़ार में ऐसा कोई ज़ेवर न मिलेगा

ये सोच लो अब आख़िरी साया है मुहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता / बशीर बद्र

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता



बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता



हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता



तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता



मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता



कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है
इस में तेरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है

एक ज़हन-ए-परेशाँ में वो फूल सा चेहरा है
पत्थर की हिफ़ाज़त में शीशे की जवानी है

क्यों चांदनी रातों में दरिया पे नहाते हो
सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है

इस हौसला-ए-दिल पर हम ने भी कफ़न पहना
हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गवानी है

रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है
आँसू कभी शीशा है आँसू कभी पानी है

ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे / बशीर बद्र

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे
चांदनी रात को बद-दुआयें न दे

फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले
तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार करने लगें
इस क़दर ख़ुबसूरत सज़ायें न दे

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे

मैं बिखर जाऊँगा आँसूओं की तरह
इस क़दर प्यार से बद-दुआयें न दे

दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे / बशीर बद्र

दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे
उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे

ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे

अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे

तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र

तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है

नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है

पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है

चंद शेर / बशीर बद्र

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।

--

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।

--

जी बहुत चाहता है सच बोलें

क्या करें हौसला नहीं होता ।

--


दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

--


एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा

ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।

--

इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी

लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।

--

वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है

कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।

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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।

--

पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,

आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।

--

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.

फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।

--

मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ

चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।

गुलाबों की तरह दिल अपना / बशीर बद्र

गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मोहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया है
ग़ज़ल के रेशमी धागे में यूँ मोती पिरोते हैं

पुराने मौसमों के नामे-नामी मिटते जाते हैं
कहीं पानी, कहीं शबनम, कहीं आँसू भिगोते हैं

यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने का
मेरी काग़ज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं

सुना है बद्र साहब महफ़िलों की जान होते थे
बहुत दिन से वो पत्थर हैं, न हँसते हैं न रोते हैं

गाँव मिट जायेगा शहर जल जायेगा / बशीर बद्र

गाँव मिट जायेगा शहर जल जायेगा
ज़िन्दगी तेरा चेहरा बदल जायेगा

कुछ लिखो मर्सिया मसनवी या ग़ज़ल
कोई काग़ज़ हो पानी में गल जायेगा

अब उसी दिन लिखूँगा दुखों की ग़ज़ल
जब मेरा हाथ लोहे में ढल जायेगा

मैं अगर मुस्कुरा कर उन्हें देख लूँ
क़ातिलों का इरादा बदल जायेगा

आज सूरज का रुख़ है हमारी तरफ़
ये बदन मोम का है पिघल जायेगा

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे / बशीर बद्र

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे
महफ़िलों महफ़िलों गुनगुनाते रहे

आँसुओं से लिखी दिल की तहरीर को
फूल की पत्तियों से सजाते रहे

ग़ज़लें कुम्हला गईं नज़्में मुरझा गईं
गीत सँवला गये साज़ चुप हो गये

फिर भी अहल-ए-चमन कितने ख़ुशज़ौक़ थे
नग़्मा-ए-फ़स्ल-ए-गुल गुनगुनाते रहे

तेरी साँसों की ख़ुशबू लबों की महक
जाने कैसे हवायें उड़ा लाईं थी

वक़्त का हर क़दम भी बहकता रहा
ज़क़्त ले पाँव भी डगमगाते रहे

ख़्वाब इन आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये / बशीर बद्र

ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
क़ब्र के सूखे हुये फूल उठा कर ले जाये

मुंतज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये

ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये

मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये

ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना बुतों के आगे
रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे / बशीर बद्र

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे
ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे

चाँद इन बदलियों से निकलेगा
कोई आयेगा दिल को आस रहे

हम मुहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे

मेरे सीने में इस तरह बस जा
मेरी सांसों में तेरी बास रहे

आज हम सब के साथ ख़ूब हँसे
और फिर देर तक उदास रहे

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में / बशीर बद्र

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में

तुम छत पे नहीं आये वो घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत लटका सावन कि घटाओं में

इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
फूलों की बदन वाली ख़ुशबू-सी अदाओं में

दुनिया की तरह वो भी हँसते हैं मुहब्बत पर
डूबे हुए रहते थे जो लोग वफ़ाओं में

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे / बशीर बद्र

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रौशनाई न दे

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहे
जहान से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

कौन आया रास्ते आईनाख़ाने हो गये / बशीर बद्र

कौन आया रास्ते आईनाख़ाने हो गए
रात रौशन हो गई दिन भी सुहाने हो गए

क्यों हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस हो
सैकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हो गए

ये भी मुमकिन है के उसने मुझको पहचाना न हो
अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फेंक दो
वो अगर ये कह रहें हो हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आँसू प्यार की तौहीन हैं
उनकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

कोई काँटा चुभा नहीं होता / बशीर बद्र

कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता

कुछ तो मैं भी बहुत दिल का कमज़ोर हूँ / बशीर बद्र

कुछ तो मैं भी बहुत दिल का कमज़ोर हूँ
कुछ मुहब्बत भी है फ़ितरतन बदगुमाँ

तज़करा कोई हो ज़िक्र तेरा रहा
अव्वल-ए-आख़िरश दरमियाँ दरमियाँ

जाने किस देश से दिल में आ जाते हैं
चांदनी रात में दर्द के कारवाँ

किस ने मुझ को सदा दी बता कौन है / बशीर बद्र

किस ने मुझको सदा दी बता कौन है
ऐ हवा तेरे घर में छुपा कौन है

बारिशों में किसी पेड़ को देखना
शाल ओढ़े हुए भीगता कौन है

मैं यहाँ धूप में तप रहा हूँ मगर
वो पसीने में डूबा हुआ कौन है

आसमानों को हमने बताया नहीं
डूबती शाम में डूबता कौन है

ख़ुशबूओं में नहाई हुई शाख़ पर
फूल-सा मुस्कुराता हुआ कौन है

दिल को पत्थर हुये इक ज़माना हुआ
हम मकाँ में मगर बोलता कौन है

कहीं चांद राहों में खो गया / बशीर बद्र

कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई

मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई

कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई

कहाँ आँसूओं की ये सौग़ात होगी / बशीर बद्र

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो

मेरे बाज़ुओं में थकी थकी , अभी महव-ए-ख़्वाब है चांदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चांदनी
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी बेचराग़ ये घर न हो

वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो

कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिल-ओ-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो

कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कभी डर न हो

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये / बशीर बद्र

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये



हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये



अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये



समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवायेँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये



मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये



मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये



उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये

ऐ हुस्न-ए-बेपरवाह तुझे शबनम कहूँ शोला कहूँ / बशीर बद्र

ऐ हुस्न-ए-बे-परवाह तुझे शबनम कहूँ शोला कहूँ
फूलों में भी शोख़ी तो है किसको मगर तुझ सा कहूँ

गेसू उड़े महकी फ़िज़ा जादू करें आँखे तेरी
सोया हुआ मंज़र कहूँ या जागता सपना कहूँ

चंदा की तू है चांदनी लहरों की तू है रागिनी
जान-ए-तमन्ना मैं तुझे क्या क्या कहूँ क्या न कहूँ

ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो / बशीर बद्र

ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो
अजनबी जैसे अजनबी तुम हो

अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो

मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो

दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं / बशीर बद्र

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं

घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँखें मलते हैं
तमाम रात खजूरों के पेड़ जलते हैं

मैं शाह राह नहीं, रास्ते का पत्थर हूँ
यहाँ सवार भी पैदल उतर कर चलते हैं

उन्हें कभी न बताना मैं उनकी आँखें हूँ
वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं

ये एक पेड़ है, आ इस से मिलकर रो लें हम
यहाँ से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं

इन आंखों से दिन रात बरसात होगी / बशीर बद्र

इन आंखों से दिन रात बरसात होगी
अगर जिंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी

मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

चिरागों को आंखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

अज़ल-ता-अब्द तक सफर ही सफर है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी

आस होगी न आसरा होगा / बशीर बद्र

आस होगी न आसरा होगा
आने वाले दिनों में क्या होगा

मैं तुझे भूल जाऊँगा इक दिन
वक़्त सब कुछ बदल चुका होगा

नाम हम ने लिखा था आँखों में
आंसूओं ने मिटा दिया होगा

आसमाँ भर गया परिंदों से
पेड़ कोई हरा गिरा होगा

कितना दुश्वार था सफ़र उस का
वो सर-ए-शाम सो गया होगा

आ चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है / बशीर बद्र

आ चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है
पलकों पे सितारों को लिये रात खड़ी है

ये बात कि सूरत के भले दिल के बुरे हों
अल्लाह करे झूठ हो बहुतों से सूनी है

वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
बचपन की ग़ज़ल ही मेरी महबूब रही है

ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिये साये
जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है

हम दिल्ली भी हो आये हैं लाहौर भी घूमे
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है

आँसूओं की जहाँ पायमाली रही / बशीर बद्र

आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही

दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही

जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही

लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही

चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही

मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही

अभी इस तरफ़ न निगाह कर / बशीर बद्र

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल के पलकें सँवार लूँ
मेरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ

मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ

अगर आसमाँ की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो
तो मैं मोतियों की दुकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ

कई अजनबी तेरी राह के मेरे पास से यूँ गुज़र गये
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तेरा नाम लेके पुकार लूँ

अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें / बशीर बद्र

अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें
वो भी आख़िर मिल गया अब क्या करें

हल्की हल्की बारिशें होती रहें
हम भी फूलों की तरह भीगा करें

आँख मूँदे उस गुलाबी धूप में
देर तक बैठे उसे सोचा करें

दिल मुहब्बत दीन दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें

घर नया कपड़े नये बर्तन नये
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें

ख़ानदानी रिश्तों में अक़्सर रक़ाबत है बहुत / बशीर बद्र

ख़ानदानी रिश्तों में अक़्सर रक़ाबत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत



अपने कालेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है
दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहता है बहुत



उनके चेहरे चाँद-तारों की तरह रोशन हुए
जिन ग़रीबों के यहाँ हुस्न-ए-क़िफ़ायत1 है बहुत



हमसे हो नहीं सकती दुनिया की दुनियादारियाँ
इश्क़ की दीवार के साये में राहत है बहुत



धूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे
गुर्वतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत2 है बहुत



उन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मी
रात से तनहा लड़ा, जुगनू में हिम्मत है बहुत

कभी यूँ भी आ / बशीर बद्र

कभी यूं भी आ मेरी आंख में, कि मेरी नजर को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो

वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो

मेरे बाज़ुऔं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी
ना उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुजर ना हो

ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी
ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो

वो फ़िराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो

कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो

कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो

वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो

तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो

कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो

कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर
यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो

सोचा नहीं अछा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं / बशीर बद्र

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला



घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला



तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला



बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला



ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वो ही न मिला

हर जनम में उसी की चाहत थे / बशीर बद्र

हर जनम में उसी की चाहत थे
हम किसी और की अमानत थे



उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई,
हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे



तेरी चादर में तन समेट लिया,
हम कहाँ के दराज़क़ामत थे



जैसे जंगल में आग लग जाये,
हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे



पास रहकर भी दूर-दूर रहे,
हम नये दौर की मोहब्बत थे



इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया,
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे



दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना,
ये दिये रात की ज़रूरत थे

आँखों में रहा दिल में न उतरकर देखा / बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में न उतरकर देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा



बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा



जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा



ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा



पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में / बशीर बद्र

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में



और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में



हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में



फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रहता है उसके आशियाने में



दूसरी कोई लड़की ज़िन्दगी में आयेगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में

मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो / बशीर बद्र

मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो

इक टहनी पर चाँद टिका था
मैं ये समझा तुम बैठे हो

उजले उजले फूल खिले थे
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो

मुझ को शाम बता देती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो

तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे
बच्चों सी बातें करते हो

सर झुकाओगे तो / बशीर बद्र

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।

इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।




हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,

जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा ।




कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,

तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।




मैं खूदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,

ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।




सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बु, ज़मीनो-आस्माँ,

मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र

चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है

महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें / बशीर बद्र

अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें
वो भी आख़िर मिल गया अब क्या करें

हल्की हल्की बारिशें होती रहें
हम भी फूलों की तरह भीगा करें

आँख मूँदे उस गुलाबी धूप में
देर तक बैठे उसे सोचा करें

दिल मुहब्बत दीन दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें

घर नया कपड़े नये बर्तन नये
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा / बशीर बद्र

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा

ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा

रात इक ख्वाब हमने देखा है / बशीर बद्र

रात इक ख्वाब हमने देखा है
फूल की पंखुड़ी को चूमा है

दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उसने लूटा है

हम तो कुछ देर हंस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है

कोई मतलब ज़रूर होगा मियाँ
यूँ कोई कब किसी से मिलता है

तुम अगर मिल भी जाओ तो भी हमें
हश्र तक इंतिज़ार करना है

पैसा हाथों का मैल है बाबा
ज़िंदगी चार दिन का मेला है

हर जन्म में उसी की चाहत थे / बशीर बद्र

हर जनम में उसी की चाहत थे
हम किसी और की अमानत थे

उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई,
हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे

तेरी चादर में तन समेट लिया,
हम कहाँ के दराज़क़ामत थे

जैसे जंगल में आग लग जाये,
हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे

पास रहकर भी दूर-दूर रहे,
हम नये दौर की मोहब्बत थे

इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया,
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे

दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना,
ये दिये रात की ज़रूरत थे

सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं / बशीर बद्र

सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं
ये लोग रात में काग़ज़ कहाँ भिगोते हैं

किसी की शह में दहलीज़ पर दिया न रखो
किवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते हैं

चराग़ पानी में मौजों से पूछते होंगे
वो कौन लोग हैं जो कश्तियाँ डुबोते हैं

क़दीम क़स्बों में क्या सुकून होता है
थके थकाये हमारे बुज़ुर्ग सोते हैं

चमकती है कहीं सदियों में आँसुओं की ज़मीं
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं

न जी भर के देखा न कुछ बात की / बशीर बद्र

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की

सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की

मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर'अब का
बरसती हुई रात बरसात की

सर झुकओगे तो पत्थर / बशीर बद्र

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा ।

कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।

मैं ख़ुदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।

सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आस्माँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

यूँ ही बेसबब न फिरा करो / बशीर बद्र

यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो



कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो



अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो



मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो



कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो



ये ख़िज़ा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो



नहीं बेहिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे / बशीर बद्र

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते आते ज़माने लगे

कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

लोग टूट जाते हैं / बशीर बद्र

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में

और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में

दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में

एक चेहरा साथ साथ रहा जो मिला नहीं / बशीर बद्र

एक चेहरा साथ साथ रहा जो मिला नहीं
किसको तलाश करते रहे कुछ पता नहीं



शिद्दत की धूप तेज़ हवाओं के बावजूद
मैं शाख़ से गिरा हूँ नज़र से गिरा नहीं



आख़िर ग़ज़ल का ताजमहल भी है मकबरा
हम ज़िन्दगी थे हमको किसी ने जिया नहीं



जिसकी मुखालफ़त हुई मशहूर हो गया
इन पत्थरों से कोई परिंदा गिरा नहीं



तारीकियों में और चमकती है दिल की धूप
सूरज तमाम रात यहां डूबता नहीं



किसने जलाई बस्तियाँ बाज़ार क्यों लुटे
मैं चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नहीं

कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं / बशीर बद्र

कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं
शाम के साये बहुत तेज़ क़दम आते हैं



दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं
इस के दरवाज़े पे सौ अहले करम आते हैं



मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिये
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं



मैं ने दो चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर तरीक़े मुझे कम आते हैं



ख़ूबसूरत सा कोई हादसा आँखों में लिये
घर की दहलीज़ पे डरते हुए हम आते हैं

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे / बशीर बद्र

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे
गिरे पड़े हुए लफ़ज़ों को मोहतरम कर दे



ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो
इसी में उसका भला है ग़ुरूर कम कर दे



यहाँ लिबास, की क़मीत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे



चमकने वाली है तहरीर मेरी क़िस्मत की
कोई चिराग़ की लौ को ज़रा सा कम कर दे



किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे

नारियल के दरख़्तों की पागल हवा / बशीर बद्र

नारियल के दरख़्तों की पागल हवा खुल गये बादबाँ लौट जा लौट जा
साँवली सरज़मीं पर मैं अगले बरस फूल खिलने से पहले ही आ जाऊँगा



गर्म कपड़ों का सन्दूक़ मत खोलना वरना यादों की काफ़ूर जैसी महक
ख़ून में आग बन कर उतर जायेगी सुबह तक ये मकाँ ख़ाक हो जायेगा



लान में एक भी बेल ऐसी नहीं जो देहाती परिन्दे के पर बाँध ले
जंगली आम की जान लेवा महक जब बुलायेगी वापस चला जायेगा



मेरे बचपन के मन्दिर की वह मूर्ति धूप के आसमाँ पे खड़ी थी मगर
एक दिन जब मिरा क़द मुकम्मिल हुआ उसका सारा बदन बर्फ में धँस गया



अनगिनत काले काले परिन्दों के पर टूट कर ज़र्दबानी को ढकने लगे
फाख़ता धूप के पुल पे बैठी रही रात का हाथ चुपचाप बढ़ता गया

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में / बशीर बद्र

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी



वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी



उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती
पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी



सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी



मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है
कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी



खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा
रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा / बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
किश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा



बेवक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा



जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा



ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा



पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा

कोई फूल / बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ ।

वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ ।




जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का,

कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ ।




कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई,

कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ ।




मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया,

मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ ।




वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी,

मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ ।




वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे,

किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।

यूँ ही बेसबब न फिरा करो / बशीर बद्र

यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो



कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो



अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो



मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो



कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो



ये ख़िज़ा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो



नहीं बेहिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका

"तुम एक गोरखधंधा हो..."

ख़ुदा के लिए गाया गया ये सूफ़ीयाना कलाम मुझे इस क़दर बेहतरीन लगता है कि सुनते हुए गुनगुनाने लगता हूं।


कभी यहां तुम्हें ढूंढा, कभी वहां पहुंचा,
तुम्हारी दीद की खातिर, कहां कहां पहुंचा,
ग़रीब मिट गए, पामाल हो गए, लेकिन
किसी तलक ना तेरा आज तक निशां पहुंचा,
हो भी नहीं और हरजां हो...
तुम एक गोरखधंधा हो... तुम गोरखधंधा हो...


हर जर्रे में किस शान से तू जलनानुमा है
हैरान हैं मगर अक्ल कि कैसा है तू क्या है
तू एक गोरखधंधा है... तू एक गोरखधंधा है...


तुझे दैरोहरम में मैने ढूंढा तू नहीं मिलता
मगर तसरीफरमा तुझको अपने दिल में देखा है
तू एक गोरखधंधा है...तू एक गोरखधंधा है...


जो उल्फत में तुम्हारी खो गया है,
उसी खोए हुए को कुछ मिला है,
न बुतखाने ना काबे में मिला है,
मगर टूटे हुए दिल में मिला है,
अदम बन कर कहीं तू छुप गया है
कही तू हस्त बन कर आ गया है
नहीं है तू तो फिर इंकार कैसा,
नफीदी तेरे होने का पता है
मैं जिसको कह रहा हूं अपनी हस्ती
अगर वो तू नहीं तो और क्या है
नहीं आया ख्यालों में अगर तू
तो फिर मैं कैसे समझूं तू खुदा है !
तू एक गोरखधंधा है...तू एक गोरखधंधा है...


हैरान हूं... मैं हैरान हूं...
हैरान हूं इस बात पर तुम कौन हो क्या हो
भला तुम कौन हो क्या हो...
तुम कौन हो क्या हो ?
क्या हो, क्या हो, कौन हो क्या हो
मैं हैरान हूं इस बात पर तुम कौन क्या हो
हाथ आओ तो बुत
हाथ ना आओ तो खुदा हो
अक्ल में जो घिर गया लाइनतहा क्योंकर हुआ
जो समझ में आ गया फिर वो खुदा क्योंकर हुआ
फलसफी को बहस के अंदर खुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
छुपते नहीं हो सामने आते नहीं हो तुम
जलवा दिखा के जलवा दिखाते नहीं हो तुम
दैरोहरम के झगड़े मिटाते नहीं हो तुम
जो अस्ल बात है वो बताते नहीं हो तुम
हैरान हूं मेरे दिल में समाए हो किस तरह
हालांकि दो जहां में समाते नहीं हो तुम
ये माबदोहरम ये कलीसाओदैर क्यूं ?
हरजाई हो जबी तो बताते नहीं हो तुम
तुम एक गोरखधंधा हो... तुम एक गोरखधंधा हो...


दिल पर हैरत ने अजब रंग जमा रखा है
एक उलझी हुई तस्वीर बना रखा है
कुछ समझ में नहीं आता कि ये चक्कर क्या है
खेल क्या तुमने अज़ल से ये रचा रखा है
रुह को जिस्म के पिंजरे का बना कर क़ैदी
उस पर फिर मौत का पहरा भी बिठा रखा है
देके तदवीर के पंछी को उड़ाने तूने
दामे तकबीर भी हरसंत बिछा रखा है
करके आरायशी को नैनकी बरसों तुमने
ख़त्म करने का भी मंसूबा बना रखा है
लामकानी का भी बहरहाल है दावा भी तुम्हें
नानो अकरब का भी पैग़ाम सुना रखा है
ये बुराई, वो भलाई, ये जहन्नुम, वो बहिश्त
इस उलटफेर में फरमाओ तो क्या रखा है
जुर्म आदम ने किया और सज़ा बेटों को
अदलो इंसाफ का मियार भी क्या रखा है
देके इंसान को दुनिया में खलाफत अपनी
इक तमाशा सा जमाने में बना रखा है
अपनी पहचान की ख़ातिर है बनाया सबको
सबकी नज़रो से मगर खुदको छुपा रखा है
तुम एक गोरखधंधा हो... तुम एक गोरखधंधा हो...


नित नए नक्श बनाते हो मिटा देते हो
जाने किस जुर्मेतमन्ना की सज़ा देते हो
कभी कंकड़ को बना देते हो हीरे की कणी,
कभी हीरों को भी मिट्टी में मिला देते हो
जिंदगी कितने ही मुर्दों को अता की जिसने
वो मसीहा भी सलीबों पे सजा देते हो
ख्वाहिशेदीद जो कर बैठे सरेतूर कोई
तूर ही बरके तजल्ली से जला देते हो
नारेनमरुद में डलवाते हो फिर खुद अपना ही खलील
खुद ही फिर नार को गुलजार बना देते हो
चाहे किन आन में फेंको कभी महिनकेन्हा
नूर याकूब की आंखो का बुझा देते हो
लेके यूसुफ को कभी मिस्त्र के बाज़ारों में
आख़िरेकार शहेमिस्त्र बना देते हो
जज़्बे मस्ती की जो मंज़िल पर पहुंचता है कोई
बैठ कर दिल में अनलहक की सज़ा देते हो
खुद ही लगवाते हो फिर कुफ्र के फतवे उस पर
खुद ही मंसूर को सूली पे चढ़ा देते हो
अपनी हस्ती भी वो एक रोज़ गवां बैठता है
अपने दर्शन की लगन जिसको लगा देते हो
कोई रांझा जो कभी खोज में निकले तेरी
तुम उसे जंग के बेले में रुला देते हो
जूस्तजू लेकर तुम्हारी जो चले कैस कोई
उसको मजनूं किसी लैला का बना देते हो
जोतसस्सी के अगर मन में तुम्हारी जागे
तुम उसे तपते हुए थल में जला देते हो
सोहनी गर तुमको महिवाल तस्सवुर करले
उसको बिफरी हुई लहरों में बहा देते हो
खुद जो चाहो तो सरेअस्र बुला कर मेहबूब
एक ही रात में मेहराज़ करा देते हो
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...
आप ही अपना पर्दा हो...आप ही अपना पर्दा हो...
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...


जो कहता हूं माना तुम्हें लगता है बुरा सा
फिर है मुझे तुमसे बहरहाल गिला सा
चुपचाप रहे देखते तुम अर्से बरी पर
तपते हुए कर्बल में मोहम्मद का नवासा
किस तरह पिलाता था लहू अपना वफा को
खुद तीन दिनों से अगर वो चे था प्यासा
दुश्मन तो बहुत और थे पर दुश्मन मगर अफ़सोस
तुमने भी फराहम ना किया पानी ज़रा सा
हर जुर्म की तौफीक है जालिम की विरासत
मजलूम के हिस्से में तसल्ली ना दिलासा
कल ताज सजा देखा था जिस शख्स के सर पर
है आज उसी शख्स के हाथों में ही कांसा
ये क्या अगर पूछूं तो कहते हो जवाबन
इस राज़ से हो सकता नहीं कोई सनासा
बस तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...


मस्ज़िद मंदिर ये मयख़ाने
कोई ये माने कोई वो माने
सब तेरे हैं जाना पास आने
कोई ये माने कोई वो माने 2
इक होने का तेरे कायिल है
इंकार पे कोई माईल है
असलियत लेकिन तू जाने
कोई ये माने कोई वो माने
एक खल्क में शामिल रहता है
एक सबसे अकेला रहता है
हैं दोनो तेरे मस्ताने
कोई ये माने कोई माने 2
हे सब हैं जब आशिक तुम्हारे नाम का
क्यूं ये झगड़े हैं रहीमोराम के
बस तुम एक गोरखधंधा हो....

मरकजे जूस्तजू आलमे रंगवू तमवदन जलवगर
तू ही तू जारसू टूटे बाहाद में कुछ नहीं इल्लाहू
तुम बहुत दिलरुबा तुम बहुत खूबरू
अर्ज की अस्मतें फर्श की आबरु
तुम हो नैन का हासने आरजू
आंख ने कर कर दिया आंसुओ से वजू
अब तो कर दो अता दीद का एक सगुन
आओ परदे से तुम आँख के रुबरु
चंद लमहे मिलन दो घड़ी गुफ्तगू
नाज जबता फिरे जादा जातू
बकू आहदाहू आहदाहू
हे लासरीकालाहू लासरीकालाहू
अल्लाहू अल्लाहू अल्लाहू अल्लाहू