शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

जुलूसों से मिले श्री-हीन चेहरे

जुलूसों से मिले श्री-हीन चेहरे
पराजित-से थके-से दीन चेहरे

बहुत शालीनता के बाद भी अब
नज़र आते नहीं शालीन चेहरे

उठाकर फेंकने के बाद उतरे
जो कुर्सी पर हुए आसीन चेहरे

घिनौनी हो गईं रंगीन शामें
बहुत अश्लील ये रंगीन चेहरे

कभी तन कर खड़े होते नहीं हैं
मुझे लगते रहे कालीन चेहरे

किसी भी काम में लगता नहीं मन
बहुत दुर्लभ हुए तल्लीन चेहरे

मेरे परिचित हज़ारों में हैं, लेकिन
हैं गहरे मित्र दो या तीन चेहरे

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