मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

"तुम एक गोरखधंधा हो..."

ख़ुदा के लिए गाया गया ये सूफ़ीयाना कलाम मुझे इस क़दर बेहतरीन लगता है कि सुनते हुए गुनगुनाने लगता हूं।


कभी यहां तुम्हें ढूंढा, कभी वहां पहुंचा,
तुम्हारी दीद की खातिर, कहां कहां पहुंचा,
ग़रीब मिट गए, पामाल हो गए, लेकिन
किसी तलक ना तेरा आज तक निशां पहुंचा,
हो भी नहीं और हरजां हो...
तुम एक गोरखधंधा हो... तुम गोरखधंधा हो...


हर जर्रे में किस शान से तू जलनानुमा है
हैरान हैं मगर अक्ल कि कैसा है तू क्या है
तू एक गोरखधंधा है... तू एक गोरखधंधा है...


तुझे दैरोहरम में मैने ढूंढा तू नहीं मिलता
मगर तसरीफरमा तुझको अपने दिल में देखा है
तू एक गोरखधंधा है...तू एक गोरखधंधा है...


जो उल्फत में तुम्हारी खो गया है,
उसी खोए हुए को कुछ मिला है,
न बुतखाने ना काबे में मिला है,
मगर टूटे हुए दिल में मिला है,
अदम बन कर कहीं तू छुप गया है
कही तू हस्त बन कर आ गया है
नहीं है तू तो फिर इंकार कैसा,
नफीदी तेरे होने का पता है
मैं जिसको कह रहा हूं अपनी हस्ती
अगर वो तू नहीं तो और क्या है
नहीं आया ख्यालों में अगर तू
तो फिर मैं कैसे समझूं तू खुदा है !
तू एक गोरखधंधा है...तू एक गोरखधंधा है...


हैरान हूं... मैं हैरान हूं...
हैरान हूं इस बात पर तुम कौन हो क्या हो
भला तुम कौन हो क्या हो...
तुम कौन हो क्या हो ?
क्या हो, क्या हो, कौन हो क्या हो
मैं हैरान हूं इस बात पर तुम कौन क्या हो
हाथ आओ तो बुत
हाथ ना आओ तो खुदा हो
अक्ल में जो घिर गया लाइनतहा क्योंकर हुआ
जो समझ में आ गया फिर वो खुदा क्योंकर हुआ
फलसफी को बहस के अंदर खुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
छुपते नहीं हो सामने आते नहीं हो तुम
जलवा दिखा के जलवा दिखाते नहीं हो तुम
दैरोहरम के झगड़े मिटाते नहीं हो तुम
जो अस्ल बात है वो बताते नहीं हो तुम
हैरान हूं मेरे दिल में समाए हो किस तरह
हालांकि दो जहां में समाते नहीं हो तुम
ये माबदोहरम ये कलीसाओदैर क्यूं ?
हरजाई हो जबी तो बताते नहीं हो तुम
तुम एक गोरखधंधा हो... तुम एक गोरखधंधा हो...


दिल पर हैरत ने अजब रंग जमा रखा है
एक उलझी हुई तस्वीर बना रखा है
कुछ समझ में नहीं आता कि ये चक्कर क्या है
खेल क्या तुमने अज़ल से ये रचा रखा है
रुह को जिस्म के पिंजरे का बना कर क़ैदी
उस पर फिर मौत का पहरा भी बिठा रखा है
देके तदवीर के पंछी को उड़ाने तूने
दामे तकबीर भी हरसंत बिछा रखा है
करके आरायशी को नैनकी बरसों तुमने
ख़त्म करने का भी मंसूबा बना रखा है
लामकानी का भी बहरहाल है दावा भी तुम्हें
नानो अकरब का भी पैग़ाम सुना रखा है
ये बुराई, वो भलाई, ये जहन्नुम, वो बहिश्त
इस उलटफेर में फरमाओ तो क्या रखा है
जुर्म आदम ने किया और सज़ा बेटों को
अदलो इंसाफ का मियार भी क्या रखा है
देके इंसान को दुनिया में खलाफत अपनी
इक तमाशा सा जमाने में बना रखा है
अपनी पहचान की ख़ातिर है बनाया सबको
सबकी नज़रो से मगर खुदको छुपा रखा है
तुम एक गोरखधंधा हो... तुम एक गोरखधंधा हो...


नित नए नक्श बनाते हो मिटा देते हो
जाने किस जुर्मेतमन्ना की सज़ा देते हो
कभी कंकड़ को बना देते हो हीरे की कणी,
कभी हीरों को भी मिट्टी में मिला देते हो
जिंदगी कितने ही मुर्दों को अता की जिसने
वो मसीहा भी सलीबों पे सजा देते हो
ख्वाहिशेदीद जो कर बैठे सरेतूर कोई
तूर ही बरके तजल्ली से जला देते हो
नारेनमरुद में डलवाते हो फिर खुद अपना ही खलील
खुद ही फिर नार को गुलजार बना देते हो
चाहे किन आन में फेंको कभी महिनकेन्हा
नूर याकूब की आंखो का बुझा देते हो
लेके यूसुफ को कभी मिस्त्र के बाज़ारों में
आख़िरेकार शहेमिस्त्र बना देते हो
जज़्बे मस्ती की जो मंज़िल पर पहुंचता है कोई
बैठ कर दिल में अनलहक की सज़ा देते हो
खुद ही लगवाते हो फिर कुफ्र के फतवे उस पर
खुद ही मंसूर को सूली पे चढ़ा देते हो
अपनी हस्ती भी वो एक रोज़ गवां बैठता है
अपने दर्शन की लगन जिसको लगा देते हो
कोई रांझा जो कभी खोज में निकले तेरी
तुम उसे जंग के बेले में रुला देते हो
जूस्तजू लेकर तुम्हारी जो चले कैस कोई
उसको मजनूं किसी लैला का बना देते हो
जोतसस्सी के अगर मन में तुम्हारी जागे
तुम उसे तपते हुए थल में जला देते हो
सोहनी गर तुमको महिवाल तस्सवुर करले
उसको बिफरी हुई लहरों में बहा देते हो
खुद जो चाहो तो सरेअस्र बुला कर मेहबूब
एक ही रात में मेहराज़ करा देते हो
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...
आप ही अपना पर्दा हो...आप ही अपना पर्दा हो...
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...


जो कहता हूं माना तुम्हें लगता है बुरा सा
फिर है मुझे तुमसे बहरहाल गिला सा
चुपचाप रहे देखते तुम अर्से बरी पर
तपते हुए कर्बल में मोहम्मद का नवासा
किस तरह पिलाता था लहू अपना वफा को
खुद तीन दिनों से अगर वो चे था प्यासा
दुश्मन तो बहुत और थे पर दुश्मन मगर अफ़सोस
तुमने भी फराहम ना किया पानी ज़रा सा
हर जुर्म की तौफीक है जालिम की विरासत
मजलूम के हिस्से में तसल्ली ना दिलासा
कल ताज सजा देखा था जिस शख्स के सर पर
है आज उसी शख्स के हाथों में ही कांसा
ये क्या अगर पूछूं तो कहते हो जवाबन
इस राज़ से हो सकता नहीं कोई सनासा
बस तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो...


मस्ज़िद मंदिर ये मयख़ाने
कोई ये माने कोई वो माने
सब तेरे हैं जाना पास आने
कोई ये माने कोई वो माने 2
इक होने का तेरे कायिल है
इंकार पे कोई माईल है
असलियत लेकिन तू जाने
कोई ये माने कोई वो माने
एक खल्क में शामिल रहता है
एक सबसे अकेला रहता है
हैं दोनो तेरे मस्ताने
कोई ये माने कोई माने 2
हे सब हैं जब आशिक तुम्हारे नाम का
क्यूं ये झगड़े हैं रहीमोराम के
बस तुम एक गोरखधंधा हो....

मरकजे जूस्तजू आलमे रंगवू तमवदन जलवगर
तू ही तू जारसू टूटे बाहाद में कुछ नहीं इल्लाहू
तुम बहुत दिलरुबा तुम बहुत खूबरू
अर्ज की अस्मतें फर्श की आबरु
तुम हो नैन का हासने आरजू
आंख ने कर कर दिया आंसुओ से वजू
अब तो कर दो अता दीद का एक सगुन
आओ परदे से तुम आँख के रुबरु
चंद लमहे मिलन दो घड़ी गुफ्तगू
नाज जबता फिरे जादा जातू
बकू आहदाहू आहदाहू
हे लासरीकालाहू लासरीकालाहू
अल्लाहू अल्लाहू अल्लाहू अल्लाहू

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