मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

ऐ हुस्न-ए-बेपरवाह तुझे शबनम कहूँ शोला कहूँ / बशीर बद्र

ऐ हुस्न-ए-बे-परवाह तुझे शबनम कहूँ शोला कहूँ
फूलों में भी शोख़ी तो है किसको मगर तुझ सा कहूँ

गेसू उड़े महकी फ़िज़ा जादू करें आँखे तेरी
सोया हुआ मंज़र कहूँ या जागता सपना कहूँ

चंदा की तू है चांदनी लहरों की तू है रागिनी
जान-ए-तमन्ना मैं तुझे क्या क्या कहूँ क्या न कहूँ

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