मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे / बशीर बद्र

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रौशनाई न दे

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहे
जहान से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

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