मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

रात के साथ रात लेटी थी / बशीर बद्र

रात के साथ रात लेटी थी
सुबह एक पालने में रोती थी

याद की बर्फपोश टहनी पर
एक गिलहरी उदास बैठी थी

मैं ये समझा के लौट आए तुम
धूप कल इतनी उजली उजली थी

कितने शादाब, कितने दिलकश थे
जब नदी रोज हमसे मिलती थी

एक कुर्ते के बाएँ कोने पर
प्यार की सुर्ख तितली बैठी थी

कितनी हल्की कमीज़ पहने हुए
सुबह अंगड़ाई लेके बैठी थी

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