कई तनाव, कई उलझनों के बीच रहे
'किचिन' झगड़ते हुए बर्तनों के बीच रहे
असंख्य लोग हज़ारों प्रकार के रिश्ते
हम इस तरह कई संबोधनों के बीच रहे
है उनके पास जहर को भी बेचने का हुनर
तमाम लोग जो विज्ञापनों के बीच रहे
वचन से हम भी हरिश्चंद्र' सिद्ध हो न सके
ये बात सच है कि हम दर्पनों के बीच रहे
जो अपने रूप पे आसक्त हो गए खुद ही
वो आमरण कई सम्मोहनों के बीच रहे
पुरानी यादों के एकांत बंद कमरे में
समय निकाल के हम बचपनों के बीच रहे
भरी सभा में वे ही कर सके हैं चीर—हरण
जो बाल्यकाल से दुर्योधनों के बीच रहे
शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010
कई तनाव, कई उलझनों के बीच रहे
इस जीवन का सार न जाना
इस जीवन का सार न जाना
ढाई आखर प्यार न जाना
धीरज की सीमा —रेखा को
दु:ख का पारावार न जाना
हम लोगों ने बंजारों—सा
धरती का विस्तार न जाना
बूढ़ा वर नवयुवा वधू के
तन का हाहाकार न जाना
मुझको जान गए दुश्मम तक
लेकिन मेरा यार न जाना
सच—मुच भूख—गरीबी क्या है
ये दिल्ली—दरबार न जाना
सागर में खोने से पहले
नदिया ने अभिसार न जाना
व्यक्तिगत छप्पर ने आकर्षित किया
व्यक्तिगत छप्पर ने आकर्षित किया
सब कि अपने घर ने आकर्षित किया
हम नहीं 'सत्यम्'—'शिवम्' की राह पर
बस हमें सुंदर ने आकर्षित किया
आज भी, भाती है आदिम छेड़—छाड़,
झील को कंकर ने आकर्षित किया
शे‘र कहता था जो सुध—बुध भूलकर
मुझको उस शायर ने आकर्षित किया
जिसमें वर्जित फल को चखने की थी चाह
उस अनैतिक डर ने आकर्षित किया
उसको सचमुच आजतक देखा नहीं
इसलिए ईश्वर ने आकर्षित किया
आज भी, सोए हुए पुरुषार्थ को
जोखिमों के स्वर ने आकर्षित किया
कांच के घर साथ रहते हैं
कांच के घर साथ रहते हैं
हर समय डर के साथ रहते हैं
जो बिछाने के बाद ओढ़ सकें
ऐसी चादर के साथ रहते हैं
उनके अहसास हो गए पत्थर
वो जो पत्थर के साथ रहते हैं
जब से बच्चों ने घर सम्हाल लिया
हम दबे 'स्वर' के साथ रहते हैं
कुछ अँधेरे किवाड़ के पीछे
रोशनी—घर के साथ रहते हैं
यक्ष—प्रश्नों का जो गवाह रहा
उस सरोवर के साथ रहते हैं
झील से छेड़—छाड़ करने को
लोग कंकर के साथ रहते हैं
अनैतिकता के चश्मों को बदलकर देखना होगा
अनैतिकता के चश्मों को बदलकर देखना होगा
गलत राहों पे वो कैसे गई ये सोचना होगा
कहाँ तक याद रखिए —खट्टी, मीठी, कड़वी बातों को
हमें आगत की खतिर भी विगत को भूलना होगा
विरोधी दोस्त भी है, रोज मिलता है, इसी कारण
विरोधी के इरादों को समझना —बूझना होगा
बहुत उन्मुक्त हो कर जिन्दगी जीना भी जोखिम है
नदी की धार को अनुशासनों में बाँधना होगा
लड़ाई में उतर कर, भागना तो का—पुरुषता है,
लड़ाई में उतर कर, जीतना या हारना होगा
मनोविज्ञान की भाषा में अपने मन की गाँठों को
अकेले बंद कमरे में किसी दिन खोलना होगा
बचाना है अगर इस मुल्क की उजली विरसत को
हमें अपनी जड़ों की ओर फिर से लौटना होगा
हवा विपरीत है हम जानते हैं
हवा विपरीत है हम जानते हैं
हवाओं का भी दम—खम जानते हैं !
अगर तुम जानते हो सारी बातें
तो हम भी तुम से कुछ कम जानते हैं !
युवा नदियों के बूढ़े सागरों से
कहाँ होते हैं संगम , जानते हैं !
मुझे वे क्षण नहीं अब याद, लेकिन
वे सारे दृश्य अलबम जानते हैं
धरा पर मौत के सौदागरों को
बहुत अच्छी तरह 'यम' जानते हैं !
कहाँ तक जाएँगे ये क्रांतिकारी
ये हर दल—बल के परचम जानते हैं !
वे अपने बाद, अपने दुश्मनों का
गजल—साहित्य में क्रम जानते हैं !