गुरुवार, मई 14, 2009

कुछ छोटे सपनो के बदले

कुछ छोटे सपनो के बदले ,

बड़ी नींद का सौदा करने ,

निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे !

वही प्यास के अनगढ़ मोती ,

वही धूप की सुर्ख कहानी ,

वही आंख में घुटकर मरती ,

आंसू की खुद्दार जवानी ,

हर मोहरे की मूक विवशता ,चौसर के खाने क्या जाने

हार जीत तय करती है वे , आज कौन से घर ठहरेंगे .

निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे !


कुछ पलकों में बंद चांदनी ,

कुछ होठों में कैद तराने ,

मंजिल के गुमनाम भरोसे ,

सपनो के लाचार बहाने ,

जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे ,

उन के भी दुर्दम्य इरादे , वीणा के स्वर पर ठहरेंगे .

निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है.



जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है .



पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ?



बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन.



तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ,
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ,
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ,
है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ
आईना रख दे मेरे हाथ में,आख़िर मैं भी,
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ
जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते,
उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ



हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है
वही बातें पुरानी थी, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है



भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा ,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का ,
मैं किस्से को हक़ीकत में बदल बैठा तो हंगामा -



बहुत बिखरा, बहुत टूटा, थपेडे़ सह नही पाया ,
हवाओं के इशारों पे मगर मैं बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया यूँ प्यार का किस्सा ,
कभी तुम सुन नही पाए, कभी मैं सुन नही पाया



कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ,
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है

तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा

ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही!
ओ अमलताश की अमलकली!
धरती के आतप से जलते..
मन पर छाई निर्मल बदली..
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||


तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||


तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या व्रन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||


मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साँधू
सुर श्रंगार भला कैसे
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवष हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||

अमावस की काली रातों में

अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसू के संग होते हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।




जब पोथे खाली होते है, जब हर सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर चाहत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।



जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते हैं,घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।



दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की एक दिन मेरे लिए भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, हाँ प्यार तुझी से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ अधिकार नहीं बाबा,
ये कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है |||

तुम अगर नहीं आयीं

तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा|
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|



तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|



तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|



दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|



औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|



तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|



रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|



कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|

सब तमन्नाएँ हों पूरी

सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे

चाहता वो है, मुहब्बत मे नुमाइश भी रहे


आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से

और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे


उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद

उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे


मुझको मालूम है मेरा है वो मै उसका हूँ

उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे


मौसमों मे रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते

कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाज़िश भी रहे

है नमन उनको

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर

इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं

है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं

है नमन उस देहरी पको जिस पर तुम खेले कन्हैया

घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं

है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय ....

हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ

हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है

नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी

सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे

शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है

जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी

उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन

काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं

है नमन उनको की जिनके सामने बोना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं

लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे

विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है

राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं

देशहित प्रतिबद्ध यौवन कै सपन तुमको नमन है

बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे

पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है

है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन

शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं

कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,

राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है

है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये

पिता की याद

फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ

फिर पिता की याद आई है मुझे

नीम सी यादें ह्रदय में चुप समेटे

चारपाई डाल आँगन बीच लेटे

सोचते हैं हित सदा उनके घरों का

दूर है जो एक बेटी चार बेटे

फिर कोई रख हाथ काँधे पर

कहीं यह पूछता है-

"क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड मे"

मै रो पडा हूँ

फिर पिता की याद आई है मुझे

फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ

ये वही पुरानी राहें हैं

चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं

ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं


कुछ तुम भूली कुछ मै भूला मंज़िल फिर से आसान हुई

हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई

आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं

चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं


तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार

जुड गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार

फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं

चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं


आओ हम दोनो की सांसों का एक वही आधार रहे

सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे

बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं

चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं

मै तुम्हे अधिकार दूँगा

मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा

मैं अपरिमित प्यार दूँगा

मैं तुम्हे अधिकार दूँगा


सत्य मेरे जानने का

गीत अपने मानने का

कुछ सजल भ्रम पालने का

मैं सबल आधार दूँगा

मैं तुम्हे अधिकार दूँगा


ईश को देती चुनौती,

वारती शत-स्वर्ण मोती

अर्चना की शुभ्र ज्योति

मैं तुम्ही पर वार दूँगा

मैं तुम्हे अधिकार दूँगा


तुम कि ज्यों भागीरथी जल

सार जीवन का कोई पल

क्षीर सागर का कमल दल

क्या अनघ उपहार दूँगा

मै तुम्हे अधिकार दूँगा

मै तुम्हे ढूंढने

मै तुम्हे ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक गया

रोज़ जाता रहा , रोज़ आता रहा

तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई

मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा


ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे

सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रही

अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्

मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं

प्राण के प्रश्न पर प्रीति की अल्पना

तुम मिटाती रहीं मै बनाता रहा

तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई

मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा


एक खामोश हलचल बनी ज़िन्दगी

गहरा ठहरा हुआ जल बनी ज़िन्दगी

तुम बिना जैसे महलों मे बीता हुआ

उर्मिला का कोई पल बनी ज़िन्दगी

दृष्टि आकाश मे आस का एक दिया

तुम बुझाती रही, मै जलाता रहा

तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई

मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा


तुम चली तो गई मन अकेला हुआ

सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ

जब भी लौटी नई खुशबूऒं मे सजी

मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ

खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर

रूठती तुम रही मै मनाता रहा

तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई

मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा


मै तुम्हे ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक गया

रोज़ जाता रहा , रोज़ आता रहा

मै कवि हूँ

सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी

होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी

हर विवश आँख के आँसू को

यूँ ही हँस हँस पीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाऒं की

हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की

दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की

मीराऒं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की

मुझको ही कथा सँजोनी है,

मुझको ही व्यथा पिरोनी है

स्मृतियाँ घाव भले ही दें

मुझको उनको सीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ

या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ

देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते

या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते

इन द्रौपदियों के चीरों से

हर क्रौंच-वधिक के तीरों से

सारा जग बच जाएगा पर

छलनी मेरा सीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले

पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले

सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना

शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना

पीडा की इस मधुशाला में

आँसू की खारी हाला में

तन-मन जो आज डुबो देगा

वह ही युग का मीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा

बादडियो गगरिया भर दे

बादडियो गगरिया भर दे

बादडियो गगरिया भर दे

प्यासे तन-मन-जीवन को

इस बार तू तर कर दे

बादडियो गगरिया भर दे


अंबर से अमृत बरसे

तू बैठ महल मे तरसे

प्यासा ही मर जाएगा

बाहर तो आजा घर से

इस बार समन्दर अपना

बूँदों के हवाले कर दे

बादडियो गगरिया भर दे


सबकी अरदास पता है

रब को सब खास पता है

जो पानी मे घुल जाए

बस उसको प्यास पता है

बूँदों की लडी बिखरा दे

आँगन मे उजाले कर दे

बादडियो गगरिया भर दे

बादडियो गगरिया भर दे

प्यासे तन-मन-जीवन को

इस बार तू तर कर दे

बादडियो गगरिया भर दे

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों

और भरोसा रातों पर

नयन हमारे सीख रहे हैं

हँसना झूठी बातों पर


हमने जीवन की चौसर पर

दाँव लगाए आँसू वाले

कुछ लोगो ने हर पल, हर दिन

मौके देखे बदले पाले

हम शंकित सच पा अपने,

वे मुग्ध स्वँय की घातों पर

नयन हमारे सीख रहे हैं

हँसना झूठी बातों पर


हम तक आकर लौट गई हैं

मौसम की बेशर्म कृपाएँ

हमने सेहरे के संग बाँधी

अपनी सब मासूम खताएँ

हमने कभी न रखा स्वयँ को

अवसर के अनुपातों पर

नयन हमारे सीख रहे हैं

हँसना झूठी बातों पर

उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती

उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती

हमको ही खासकर नही मिलती


शायरी को नज़र नही मिलती

मुझको तू ही अगर नही मिलती


रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया

ढूंढता हूँ मगर नही मिलती


लोग कहते हैं रुह बिकती है

मै जिधर हूँ उधर नही मिलती

आना तुम

आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये

तन-मन की धरती पर

झर-झर-झर-झर-झरना

साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये


तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी

जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी

लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी

पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी

सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन

मेरे तट आना

एक भीगा उल्लास लिये

आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये


जब तुम आऒगी तो घर आँगन नाचेगा

अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा

माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी

बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी

कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल, अरूणिम-अरुणिम

पायल की ध्वनियों में

गुंजित मधुमास लिये

आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये

मेरे पहले प्यार

ओ प्रीत भरे संगीत भरे!

ओ मेरे पहले प्यार !

मुझे तू याद न आया कर

ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!

नस नस के पहले ज्वार!

मुझे तू याद न आया कर।




पावस की प्रथम फुहारों से

जिसने मुझको कुछ बोल दिये

मेरे आँसु मुस्कानो की

कीमत पर जिसने तोल दिये

जिसने अहसास दिया मुझको

मै अम्बर तक उठ सकता हूं

जिसने खुदको बाँधा लेकिन

मेरे सब बंधन खोल दिये


ओ अनजाने आकर्षण से!

ओ पावन मधुर समर्पण से!

मेरे गीतों के सार

मुझे तू याद न आया कर।




मूझे पता चला मधुरे तू भी पागल बन रोती है,

जो पीङा मेरे अंतर में तेरे दिल में भी होती है

लेकिन इन बातों से किंचिंत भी अपना धैर्य नही खोना

मेरे मन की सीपी में अब तक तेरे मन का मोती है,




ओ सहज सरल पलकों वाले!

ओ कुंचित घन अलकों वाले!

हँसते गाते स्वीकार

मुझे तू याद न आया कर।

ओ मेरे पहले प्यार

मुझे तू याद न आया कर

मुक्तक

1.

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया

हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया

रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा

कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया


2.

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन

मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन

इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है

एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन


3.

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ

तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ

तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन

तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ


4.

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या

जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या

मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है

हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या


5.

समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता

ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता

मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले

जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता

बाँसुरी चली आओ

तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा

साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा

तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है




तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है

तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है

रात की उदासी को याद संग खेला है

कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है

औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से

भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से

दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है

आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है

कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!