बुधवार, अप्रैल 08, 2009

फासले ऐसे भी होंगे - अदीम हाश्मी


फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था

सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था ,

वो कि खुशबु की तरह फैला था मेरे चारसू,

मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर उसी की आहट कान में आती रही

झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था,

अक्स तो मौजूद थे पर अक्स तन्हाई के थे

आईना तो था मगर उस में तेरा चेहरा ना था

उसने दर्द भी अपने अलहदा कर दिए

आज मैं रोया तो मेरे साथ वो रोया ना था

ये सभी वीरानियाँ उसके जुदा होने से थी

आँख धुंधलाई हुयी थी शहर धुन्धलाया हुआ ना था,

याद करके और भी तकलीफ होती थी

भूल जाने के सिवा कोई भी चारा न था।

हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद...- राही मासून रज़ा

हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पे कितना तनहा होगा चाँद।
चाँद बिना हर शब यों बीती जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद।
आ पिया मोरे नैनन में मैं पलक ढाँप तोहे लूँ
ना मैं देखूँ और को, ना तोहे देखन दूँ।
रात ने ऐसा पेंच लगाया टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद।
जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक कतरा होगा चान्द।...