कमरे को नई आबो-हवा क्यों नहीं देते
इन बूढ़े कलेंडरों को हटा क्यों नहीं देते
इक शख़्स गुलेलों को यहाँ बेच रहा है
ये राज़ परिन्दों को बता क्यों नहीं देते
अलमारी में रख आओ गए वक़्त की एलबम
जो बीत गया उसको भुला क्यों नहीं देते
ऐ तेज़ हवा, तू भला समझेगी कहाँ तक
हम तुझको चराग़ों का पता क्यों नहीं देते
पोशाक मेरी आपसे शफ़्फ़ाक है ज़्यादा
ये मेरी ख़ता है तो सज़ा क्यों नहीं देते
हम ख़ानाबदोशों के नहीं होते ठिकाने
मत पूछ कि हम घर का पता क्यों नहीं देते.
सोमवार, मार्च 08, 2010
कमरे को नई आबो-हवा क्यों नहीं देते
मुझसे अहबाब भी मिलते रहे अनबन रखके
मुझसे अहबाब भी मिलते रहे अनबन रखके
कभी लपटें तो कभी जेब में चन्दन रखके
अब हवाएँ भी चली आती हैं लेके पत्थर
अब मैं डरता हूँ बहुत काँच के बरतन रखके
ज़लज़लो ! मैंने तुम्हें अपना बनाया मेहमाँ
और तुम बैठ गए नींव में कम्पन रखके
चल दिया दोस्त पुराना मेरे घर से आख़िर
मेरी टेबल पे कोई याद की कतरन रखके
अपनी औक़ात का मीज़ान लगा ऐ चिड़िया !
क्या मिलेगा तुझे आकाश से अनबन रखके
ज़िन्दगी, तू मुझे जीने दे फ़कीरों की तरह
क्या करूँगा ये तेरा राज सिंहासन रखके
किसी के दुख में रो उठ्ठूँ कुछ ऐसी तर्जुमानी दे
किसी के दुख में रो उठ्ठूँ कुछ ऐसी तर्जुमानी दे
मुझे सपने न दे बेशक, मेरी आँखों को पानी दे
मुझे तो चिलचिलाती धूप में चलने की आदत है
मेरे भगवान ! मेरे दोस्तों को रुत सुहानी दे
ये रद्दी बीनते बच्चे जो फुटपाथों पे सोये हैं
तू इनको कुछ नहीं देता तो तो अपनी मेहरबानी दे
मेरे भगवान ! तु्झसे माँगना अच्छा नहीं लगता
अगर तू दे सके तो ख़ुश्क दरिया को रवानी दे
यहाँ इन्सान कम , ख़रीदार आते हैं नज़र ज़्यादा
ये मैंने कब कहा था मुझको ऐसी राजधानी दे.
दिल का क्या है वो किसी रूप में ढल जाएगा
दिल का क्या है वो किसी रूप में ढल जाएगा
दिल तो मिट्टी के खिलौने से बहल जाएगा
आज ही डाल के आया था मैं पतलून नई
मैंने सोचा भी न था पाँव फिसल जाएगा
बस यही सोच के मैंने नहीं हारी हिम्मत
मैं अगर बैठा रहा वक़्त निकल जाएगा
लोग इस शहर के भजनों की लगा कर कैसेट
सोच लेते हैं कि माहौल बदल जाएगा
कोई पैदल ही मेरा साथ निभा दे शायद
कार वाला तो बहुत तेज़ निकल जाएगा.
हमारे शहर के बच्चे बहुत सयाने हैं
सभी को कीमती कपड़े पहन के आने हैं
बदन के घाव हर इक शख़्स को दिखाने हैं
अभी न छीन तू परवाज़ उस परिंदे की
अभी तो उसने कई घोंसले बनाने हैं
तेरे शहर की उदासी का हाल तू जाने
मेरे शहर में लतीफ़ों के कारख़ाने हैं
मैं इस लिए नहीं बारात में हुआ शामिल
फटी कमीज़ है जूते भी कुछ पुराने हैं
शहर की पटरियों पे बन गई हैं दूकानें
भिखारियों के न जाने कहाँ ठिकाने हैं
कटी पतंग के पीछे वो भागते ही नहीं
हमारे शहर के बच्चे बहुत सयाने हैं
उदासी दर्द हैरानी इधर भी है उधर भी है
उदासी दर्द हैरानी इधर भी है उधर भी है
अभी तक बाढ़ का पानी इधर भी है उधर भी है
वहाँ हैं त्याग की बातें, इधर हैं मोक्ष के चर्चे
ये दुनिया धन की दीवानी इधर भी है उधर भी है
क़बीले भी कहाँ ख़ामोश रहते थे जो अब होंगे
लड़ाई एक बेमानी इधर भी है उधर भी है
समय है अल्विदा का और दोनों हो गए गुमसुम
ज़रा-सा आँख मेम पानी इधर भी है उधर भी है
हुईं आबाद गलियाँ, हट गया कर्फ़्यू, मिली राहत
मगर कुछ-कूछ पशेमानी इधर भी है उधर भी है
हमारे और उनके बीच यूँ तो सब अलग-सा है
मगर इक रात की रानी इधर भी है उधर भी है
कोई समझता नहीं दोस्त, बेबसी मेरी
कोई समझता नहीं दोस्त, बेबसी मेरी
महानगर ने चुरा ली है ज़िन्दगी मेरी
तुम्हारी प्रार्थना के शब्द हैं थके हारे
सजा के देखिए कमरे में ख़ामुशी मेरी
मुझे भँवर में डुबो कर सिसकने लगता है
बहुत अजब है समन्दर से दोस्ती मेरी
तुम्हारे बाग का माली मैं बन गया लेकिन
किसी भी फूल पे मरज़ी नहीं चली मेरी
मैं नंगे पाँव हूँ जूते ख़रीद सकता नहीं
कि लोग इसको समझते हैं सादगी मेरी
खड़ा हूँ मश्क लिए मैं उजाड़ सहरा में
किसी की प्यास बुझाना है बन्दगी मेरी
ख़ुदा के वास्ते इस पे न डालिए कीचड़
बची हुई है यही शर्ट आख़री मेरी
तमाम ज़ख़्म मेरे हो गए बहुत बूढे
पुरानी पड़ गई यादों की डायरी मेरी.
उसका साथ भी देता तो किस तरह
मेरा ख़्याल है जादू कोई शरर में था
वो बुझ गया था मगर शहर की ख़बर में था
मैं देखता रहा जाद़्ए की रात में उसको
पुरानी आग का इक राख़दान घर में था
उठा के जेब में रखता था चप्पलें अपनी
बस एक ऐब यही मेरे हमसफ़र में था
सड़क पे गोली चली लोग हो गये ज़ख़्मी
ख़ुदा का शुक्र मैं उस वक़्त अपने घर में था
मैं उसका साथ भी देता तो किस तरह देता
वो शख़्स ज़िन्दगी के आख़िरी सफ़र में था
हाथ फैलाने के अंदाज़ सिखाता क्यूँ है
हाथ फैलाने के अंदाज़ सिखाता क्यूँ है
राहतें दे के मुझे इतना झुकाता क्यूँ है
खिड़कियाँ खोल कि मौसम का तुझे इल्म रहे
बन्द कमरे की तरह ख़ुद को बनाता क्यूँ है
तितलियाँ लगती हैं अच्छी जो उड़ें गुलशन में
तू उन्हें मार के एलबम में सजाता क्यूँ है
तू है तूफ़ान तो फिर राजमहल से टकरा
मेरी बोसीदा-सी दीवार गिराता क्यूँ है
टूट के गिर न पड़ें अश्क मेरी आँखों से
बेवजह दोस्त मुझे इतना हँसाता क्यूँ है.
वो किसी बात का चर्चा नहीं होने देता
वो किसी बात का चर्चा नहीं होने देता
अपने ज़ख्मों का वो जलसा नहीं होने देता
ऐसे कालीन को मैं किस लिए रक्खूँ घर में
वो जो आवाज़ को पैदा नहीं होने देता
यह बड़ा शहर गले सब को लगा लेता है
पर किसी शख़्स को अपना नहीं होने देता
उसकी फ़ितरत में यही बात बुरी है यारो
बहते पानी को वो दरिया नहीं होने देता
यह जो अनबन का है रिश्ता मेरे भाई साहब!
घर के माहौल को अच्छा नहीं होने देता.
ये कारवाने वक़्त कसक छोड़ जाएगा
ये कारवाने वक़्त कसक छोड़ जाएगा
हर रास्ते पे अपने सबक़ छोड़ जाएगा
मारोगे तुम गुलेल परिन्दे को और वो
उड़ते हुए भी अपनी चहक छोड़ जाएगा
जुगनू की सादगी का मैं कैसे करूँ बयाँ
मर जाएगा मगर वो चमक छोड़ जाएगा
है चाँद तो लिक्खेगा मेरे हाथ पर नमन
आकाश है तो अपना उफ़क छोड़ जाएगा
उतरेगा बादलों की तरह लम्स जब तेरा
मेरी हथेलियों पे धनक छोड़ जाएगा
बारूद बन के आएगा वो मेरे घर कभी
कुछ दे न दे पर अपनी धमक छोड़ जाएगा
तू मानता है अपना मुकद्दर जिसे 'विवेक'
ज़ख़्मों पे तेरे वो भी नमक छोड़ जाएगा.
महोबतों के खुले दर नज़र नहीं आते
महोबतों के खुले दर नज़र नहीं आते
कि अब ख़ुलूस के मंज़र नज़र नहीं आते
बहुत उदास है आकाश मेरी बस्ती का
कि बच्चे आजकल छत पर नज़र नहीं आते
किसे बताऊँ हक़ीक़त फ़साद की यारो
खुले किवाड़ के अब घर नज़र नहीं आते
जो आसमान अमन का बिछाया करये थे
ये सानेहा वो कबूतर नज़र नहीं आते
लोग उँची उड़ान रखते हैं
लोग उँची उड़ान रखते हैं
हाथ पर आसमान रखते हैं
शहर वालों की सादगी देखो
अपने दिल में मचान रखते हैं
ऐसे जासूस हो गये मौसम
सबकी बातों पे कान रखते हैं
मेरे इस अहद में ठहाके भी
आँसुओं की दुकान रखते हैं
हम सफ़ीने हैं मोम के लेकिन
आग के बादबान रखते हैं
कुछ लोग थे कि रेत में जल ढूँढते रहे
कुछ लोग थे कि रेत में जल ढूँढते रहे
सूखी हथेलियों पे कमल ढूँढते रहे
कल हम अँधेरी रात की क्यारी में दोस्तो
आवारा जुगनुओं की फ़सल ढूँढते रहे
रोटी का एक प्रश्न उछाला हयात ने
सब लोग उस सवाल का हल ढूँढते रहे
उन दोस्तों के नज़रिये पे तबसरा भी क्या
जो झोंपड़ी में ताजमहल ढूँढते रहे
धूप लिक्खूँ या कहकशाँ लिक्खूँ
धूप लिक्खूँ या कहकशाँ लिक्खूँ
तेरे हातों पे आसमाँ लिक्खूँ
तेरी आँखें अगर इजाज़त दें
उनमें सपनों की ठुमरियाँ लिक्खूँ
अपनी ख़ुशियों के कोरे काग़ज़ पर
तेरे अश्कों का तरजुमाँ लिक्खूँ
रेत पर चाँद पर कि लहरों पर
नाम तेरा कहाँ-कहाँ लिक्खूँ
रास्ता हूँ कि नक्श हैं लाखों
किस मुसाफ़िर की दास्ताँ लिक्खूँ
तुझको दे दूँ मिलन की उम्मीदें
अपने हिस्से में दूरियाँ लिक्खूँ
खड़ा हुआ हूँ बिजली की नंगी तारों के बीच
रोज़ भरा है रोज़नामचा हत्यारों के बीच
खड़ा हुआ हूँ बिजली की नंगी तारों के बीच
कल नेता जी मेरे शहर में आकर बाँट गए-
रोज़गार के मीठे सपने बेकारों के बीच
महानगर में एक मरे या मरें हज़ारों लोग
मौत सभी को खा जाती है अख़बारों की बीच
हैरानी तो ये है कि नंगे हैं जिसके पाँव
अपना रस्ता बना रहा है अंगारों के बीच
हज़ारों वहशतों का घर है दंगा
हज़ारों वहशतों का घर है दंगा
हक़ीक़त ये कि कैंसर है दंगा
जो पीता है लहू इंसानियत का
बहुत भूखा कोई कोई ख़ंजर है दंगा
ऐ हिन्दुस्तानियो,साज़िश से बचना
सियासत का कोई अस्तर दंगा
किसी कर्फ़्यूज़दा बस्ती का सच है
कि बाहर चुप मगर अन्दर है दंगा
मैं डरने लग गया हूँ मज़हबों से
कि उनके ही पसे-मंज़र है दंगा
किसी आसेब का चेहरा है कोई
या कोई मौत का मन्तर है दंगा
धुआँ, आँसू ,लहू ,कर्फ़्यू , उदासी
कुछ ऐसे हादसों का घर है दंगा
तुम्हारे शहर का मौसम भला था
तुम्हारे शहर में क्योंकर है दंगा
हाथ में लेकर खड़ा है बर्फ़ की वो सिल्लियाँ
हाथ में लेकर खड़ा है बर्फ़ की वो सिल्लियाँ
धूप की बस्ती में उसकी हैं यही उपलब्धियाँ
आसमाँ की झोंपड़ी में एक बूढ़ा आफ़ताब
पढ़ रहा होगा अँधेरे की पुरानी चिठ्ठियाँ
फूल ने तितली से इक दिन बात की थी प्यार की
मालियों ने नोच दीं उस फूल की सब पत्तियाँ
मैं अँगूठी भेंट में जिस शख़्स को देने गया
उसके हाथों की सभी टूटी हुई थीं उँगलियाँ
जाने वो कैसा जलसा था
पानी-पानी चीख रहा था
सहरा भी कितना प्यासा था
एक फटा ख़ाली-सा बादल
मुफ़लिस की ख़ुशियों जैसा था
आँखों के जंगल में आँसू
जुगनू बन कर बोल रहा था
उसका पागलपन तो देखो
अपनी मौत पे ख़ुश होता था
सब जज़्बों की धूप के ऊपर
इस्पाती इन्सान खड़ा था
सब सुनने वाले बहरे थे
जाने वो कैसा जलसा था
हर आदमी है यहाँ दर्द का स्कूल कोई
हर आदमी है यहाँ दर्द का स्कूल कोई
जो हो सके तो उगाना ख़ुशी के फूल कोई
तुम अपने घर में चराग़ों की ख़ुद करो रक्षा
कि आँधियों का तो होता नहीं उसूल कोई
सभी के वर्क चढ़े जश्न बिक गये यारो
मेरी ख़ामोशियाँ करता नहीं कबूल कोई
थीं जिसको आदतें कालीन रख के चलने की
गिरा वो अन्त में जैसे हो पथ की धूल कोई
कुछ इस तरह मुझे लगता है साँझ का सूरज
सुहाग सेज पे जैसे पड़ा हो फूल कोई
तुम ही बताओ क्या वो कोई हादसा न था
तुम ही बताओ क्या वो कोई हादसा न था
मुद्दत से मेरे शहर में कोई हँसा न था
नारे वही, जुलूस वही ,रैलियाँ वही
उस शहरे इन्कलाब में कुछ भी नया न था
गुम्बद में एक ज़ख़्मी अँधेरे की चीख़ था
पर मौन की स्लेट पर कुछ भी गिरा न था
कालोनियाँ नगर की उसे मिल के खा गईं
वो खेत जो किसी का बुरा सोचता न था
ख़ामोशियों के पाँव की हलकी-सी चाप थी
तू जिससे डर गया वो कोई ज़लज़ला न था
टिमटिमाता हुआ इक अश्क गिरा हो जैसे
टिमटिमाता हुआ इक अश्क गिरा हो जैसे
दूर मंदिर में कोई दीप जला हो जैसे
आँख मलते हुई यूँ धूप खड़ी थी छत पर
नींद के बाद कोई बच्चा उठा हो जैसे
आइना इस तरह वो देख रहा था यारो
मुद्दतों बाद उसे चेहरा मिला हो जैसे
एक पागल था जो फिरता था परीशाँ होकर
ख़ुद को रख वो कहीं भूल गया हो जैसे
यूँ दिखाती रही वो अपनी हथेली मुझको
मेरी किस्मत का कोई चाँद पड़ा हो जैसे
तुम झोंपड़ी बनाओ यहाँ देख-भाल कर
तुम झोंपड़ी बनाओ यहाँ देख-भाल कर
गुज़रेंगे लोग आग की लपटें उछाल कर
संवेदना विहीन इस बस्ती में हर कोई
आता है भाप बेचने आँसू उबाल कर
ख़ुश हो रहे थे बालकों की की तरह सब बड़े
काग़ज़ की एक नाव को पानी में डाल कर
मरहम की कर तलाश अपने घाव के लिए
जो लग गई है चोट न उसका मलाल कर
उस ज़िन्दगी ने तोड़ दिया आइना मेरा
रक्खा था जिसके अक्स को मैंने सम्हाल कर
ये ज़िन्दगी भी किसी दर्द के हवन-सी है
ये ज़िन्दगी भी किसी दर्द के हवन-सी है
श्लोक बोलती रहती कोई अगन-सी है
तुम्हारे वास्ते ये आग आग है लेकिन
हमारे वास्ते ये आग आचमन-सी है
नगर का शोर शराबा सौतेला भाई है
परन्तु गाँव की चुप्पी सगी बहन-सी है
बहुत हैं दोस्त यहाँ फिर भी ऐसा लगता है
कि दोस्ती यहाँ ख़ाली पड़े भवन-सी है
तड़पते नक्शे-क़दम देखकर यक़ीन हुआ
कि सबके पाँवों में लिपटी हुई थकन-सी है
थिरकती काँपती दीपक की एक लौ जैसे
अँधेरे पृष्ठ पर लिक्खे हुए नमन-सी है
तू है बेचैन बहुत जिसको मनाने के लिए
तू है बेचैन बहुत जिसको मनाने के लिए
वो भी आएगा कभी हाथ मिलाने के लिए
दर्द आएगा दबे पाँव पुरोहित बन कर
दिल के मंदिर में कोई शंख बजाने के लिए
बूँद सूरज के पसीने की उठा लाया हूँ
ज़ुल्मतों की कोई तहरीर मिटाने के लिए
यज्ञ, उपवास, निवेदन किए लाखों हमने
एक रूठे हुए बादल को मनाने के लिए
चुटकुलेबाज़ की क्या ख़ूब अदाकारी थी
रोटियाँ लाया था भूखों को हँसाने के लिए
इन हवाओं का इल्मो-हुनर देखिए
इन हवाओं का इल्मो-हुनर देखिए
नोच डाले परिन्दों के पर देखिए
एक चिड़िया ने मुझसे कहा एक दिन
आपके घर में है मेरा घर, देखिए
आग ही आग है उसके चारों तरफ़
और बारूद है बेख़बर देखिए
चुपके अन्धे कुएँ में गिराकर मुझे
ख़ुश है कर्फ़्यू का मरा शहर देखिए
दूर तक रेत ही रेत और ज़िन्दगी
इक हिरण की भटकती नज़र देखिए
जिसके साये में कोई नहीं बैठता
वो खडा है शजर, चश्मे-तर देखिए
तुम कभी ज़र्रों के अन्दर देखो
तुम कभी ज़र्रों के अन्दर देखो
कितने सूखे हैं समन्दर देखो
आज अश्कों ने धनुष तोड़ा है
आज आँखों का स्वयंवर देखो
हर कोई दे गया खोटे सिक्के
एक अंधे का मुकद्दर देखो
आपकी आँख न सह पाएगी
मेरी आँखों से ये खंडहर देखो
जिनका चूल्हा न जला दो दिन से
उनको कैसे कहूँ हँस कर देखो.
अपनी औक़ात समझ ख़ुद को पयम्बर न बना
अपनी औक़ात समझ ख़ुद को पयम्बर न बना
देख बच्चों की तरह रेत पे अक्षर न बना
मुझसे मिलना है तो मिल आके फ़क़ीरों की तरह
मुझसे मिलने के लिए ख़ुद् को सिकन्दर न बना
दस्तकें देता रहेगा कोई आतंक सदा
वारदातों की गली में तू कोई घर न बना
प्यार के गीत का ये शब्द बहुत सच्चा है
रूह से छू ले इसे जिस्म का मन्तर न बना.
रेज़गारों की अदावत से बचा ले मुझको
रेज़गारों की अदावत से बचा ले मुझको
जल की इक बूँद हूँ आँखों में बसा ले मुझको
एक आवाज़ हूँ दूँगा तुझे शब्दों के गुलाब
अपने सन्नाटे के गमले में लगा ले मुझको
मैं तो सोये हुए बालक की हँसी हूँ ऐ दोस्त
तेरा जी चाहे तो चुपचाप चुरा ले मुझको
क्या पता धूप के पानी में बदल जाऊँ मैं
अपने अहसास की किरणों में मिला ले मुझको
पेड़ की शाख़ ने मुस्का के कहा बालक से
तूने खाने हैं अगर फल तो झुका ले मुझको.
क्यों भटकता कोई बेचैन अँधेरों की तरह
क्यों भटकता कोई बेचैन अँधेरों की तरह
ज़िन्दगी होती अगर रैन-बसेरों की तरह
ग़ज़नबी की ज़रा फ़ितरत को तो देखो यारो
वि थाहाकिम मगर आया था लुटेरों की तरह
जब बुलाएँगे समन्दर के तलातुम हमको
हम उतर जाएँगे बेखौफ़ मछेरों की तरह
मैं भी नागिन को जुदा नाग से करता लेकिन
दिल नहीं था मेरा पाषाण सपेरों की तरह
दर्द उस खेत की मिट्टी का बताऊँ कैसे
ज़िन्दगी जिसने गुज़ारी है मुँडॆरों की तरह.
इक लफ़्ज़ में जो प्यार का पैग़ाम लिख गया
इक लफ़्ज़ में जो प्यार का पैग़ाम लिख गया
उँगली से रेत पर वो मेरा नाम लिख गया
मिलनी थी जिस गुनाह पे मुझको सज़ाए-मौत
मुंसिफ़ उसी गुनाह पे ईनाम लिख गया
कर्फ़्यू का भूत हाथ में लेकर कलम-दवात
इक खौफ़ज़दा शाम सबके नाम लिख गया
मैं वक़्त के तिलिस्म को समझा नहीं कभी
आग़ाज़ लिख के हाथ पे अंजाम लिख गया
माली भी था अजीब कि वो जिन्स की तरह
फूलों के भाव ख़ुश्बुओं के दाम लिख गया.
भूचाल जो मेरा मकान तोड़ जाएगा
भूचाल जो मेरा मकान तोड़ जाएगा
मुमकिन है अपने अश्क बहाँ छोड़ जाएगा
अंधा फ़क़ीर और फिर ये अजनबी शहर
जो भी मिलेगा उसको ग़लत मोड़ जाएगा
वो ख़ाली अब्र है तो क्या होंठों पे रख के देख
अपने बदन की कुछ तो नमी छोड़ जाएगा
तू काँच की ख़ुशी को सँभालेगा कब तलक
कोई उदास लम्हा उसे तोड़ जाएगा
नुकसान और लाभ का उसको पता नहीं
बालक है, एक साथ इन्हें जोड़ जाएगा.
अपने विश्वास को आप तोड़ा न कर
अपने विश्वास को आप तोड़ा न कर
जो पराए हैम ख़त उनको खोला न कर
आँसुओं की किताबें खुली छोड़ कर
याद की धूप के पीछे दौड़ा न कर
मौत के बाद ही एक है ज़िन्दगी
मौत के नाम पर इतना सोचा न कर
तितलियाँ यायावर हो न जाएँ कहीं
तू बगीचे के फूलों को तोड़ा न कर
पार करना है दरिया तो चप्पू उठा
काग़ज़ी कश्तियों पे भरोसा न कर
सारी बस्ती ये नाबीना लोगों की है
इनके रस्ते में पत्थर तू रक्खा न कर
अजीब किस्म का विश्वास उस बशर में है
अजीब किस्म का विश्वास उस बशर में है
है उसके पाँव में बेड़ी मगर सफ़र में है
सपेरे दूर से तकरीर सुनने आए हैं
विषैले साँपों का जलसा मेरे शहर में है
ज़रूर नाचेंगे मज़दूर चार दिन यूँ ही
कि चार रोज़ का राशन सभी के घर में है
पहाड़ बर्फ़ का बेख़ौफ़ खड़ा है फिर भी
उसे पता है कि वो धूप की नज़र में है
मुझे बुलाए तो किस तरह घर बुलाए वो
किराएदार की तरह जो अपने घर में है.
कभी वो शाहसवारों की बात करता
कभी वो शाहसवारों की बात करता है
कभी उदास कहारों की बात करता है
अज़ल के रिश्ते हों जिस शख़्स के तलातुम से
भला कहाँ वो किनारों की बात करता है
ज़रूर धूप का मारा हुआ बशर होगा
जो दिन के वक़्त सितारों की बात करता है
मैं उसको शीशमहल के सुनाता हूँ क़िस्से
वो अपनी टूटी दीवारों की बात करता है
वो बूढ़ा पेड़ कि जिस पर नहीं कोई पत्ता
कि अब भी गुज़री बहारों की बात करता है.
हरेक आदमी बेघर है ज़िन्दगी के लिए
हरेक आदमी बेघर है ज़िन्दगी के लिए
कि जैसे राम भटकते थे जानकी के लिए
ये उस मल्लाह की पूजा नहीं तो फिर क्या है
जो अश्क रख गया सूखी हुई नदी के लिए
अजीब बात कि वो ससदमी था नाबीना
कि जिसने धूप चुराई थी रोशनी के लिए
पराए शहर में गर जानता नहीं कोई
तो ख़ुद से हाथ मिला ले तू दोस्ती के लिए
मशीनें लोरियाँ देंगी तमाम बच्चों को
ये होगा हादसा इक्कीसवीं सदी के लिए
मैँ जो मज़ार पे दीपक जला के आया हूँ
तड़प रहा है वो मंदिर की आरती के लिए.
मैं कुछ दिन से यहाँ आकर बसा हूँ
मैं कुछ दिन से यहाँ आकर बसा हूँ
मिज़ाजे-शहर से ना-आश्ना हूँ
यही तो मेरे ग़म की इन्तहा है
कि मैं अन्धे शहर का आइना हूँ
भटकते हैं कई एकान्त मुझमें
शिलालेखों की तरह मैं खड़ा हूँ
तुझे शुभकामनाओं की पड़ी है
फटे कोने का ख़त मैं पढ़ रहा हूँ
अकेला दौड़ना है मेरी फ़ितरत
मैं घोड़ा अश्वमेधी यज्ञ का हूँ
यूँ गुज़रे लोग मुझसे दूर होकर
कि जैसे मैं भी कोई हादसा हूँ
कोई बिछुड़ा हुआ बालक हो जैसे
भरे मेले में ऐसे मैं खड़ा हूँ
मुझे मत तोड़िये धागा समझकर
कि यारो मैं किसी की आस्था हूँ.
व्याकरण हो गया वो शख़्स ज़माने के लिए
व्याकरण हो गया वो शख़्स ज़माने के लिए
फ़ारमूले जो बनाता था हँसाने के लिए
खा गया नक्शा किसी सेठ का उसके घर को
यत्न जिसने किए बस्ती को बसाने के लिए
एक चिड़िया है जो दुख मेरा समझ सकती है
वो भी भटकी है बहुत अपने ठिकाने के लिए
ज़िन्दगी ! मैं तेरी पलकों पे बिछाऊँगा सहर
कोई सोई हुई उम्मीद जगाने के लिए
किस चालाकी से उसे ओढ़ लिया है मैने
वो जो फ़ुट्पाथ था रातों को बिछाने के लिए
आग दंगे की लगानी तो थी आसान मगर
ख़ून के अश्क गिराये थे बुझाने के लिए
व्याकरण हो गया वो शख़्स ज़माने के लिए
व्याकरण हो गया वो शख़्स ज़माने के लिए
फ़ारमूले जो बनाता था हँसाने के लिए
खा गया नक्शा किसी सेठ का उसके घर को
यत्न जिसने किए बस्ती को बसाने के लिए
एक चिड़िया है जो दुख मेरा समझ सकती है
वो भी भटकी है बहुत अपने ठिकाने के लिए
ज़िन्दगी ! मैं तेरी पलकों पे बिछाऊँगा सहर
कोई सोई हुई उम्मीद जगाने के लिए
किस चालाकी से उसे ओढ़ लिया है मैने
वो जो फ़ुट्पाथ था रातों को बिछाने के लिए
आग दंगे की लगानी तो थी आसान मगर
ख़ून के अश्क गिराये थे बुझाने के लिए
ख़ुशी का चाँद यहाँ कम जवान होता है
ख़ुशी का चाँद यहाँ कम जवान होता है
हमेशा फ़िक्रज़दा आसमान होता है
लगा है पीछे मेरे हादसों का गैंग कोई
महानगर में ये अक्सर गुमान होता है
खड़ा हूँ इस तरह ख़ामोश, इस तरह तन्हा
कि जैसे शहर का अंतिम मकान होता है
तुम्हारे वास्ते बारिश ख़ुशी की बात सही
हमारी छत के लिए इम्तहान होता है
लपेटिये, इसे रखिये या काटते रहिये
ग़रीब आदमी कपड़े का थान होता है.
दब न जाऊँ मैं कहीं मील का पत्थर बनकर
दब न जाऊँ मैं कहीं मील का पत्थर बनकर
मुझको उड़ जाने दे आवार बवण्डर बनकर
रेत पे सोये सफ़ीनों को जगाने के लिए
मैं जो आया तो फिर आऊँगा समन्दर बनकर
वो सितारा कि जो कल रात हुआ था अन्धा
गिर गया होगा ज़मीं पे कहीं पत्थर बनकर
किसी पोरस से मिलेगा तो सहम जाएगा
जो मेरे मुल्क में आया है सिकन्दर बनकर
मैं वो सूरज हूँ जो पीता है अँधेरे का ज़हर
कभी सुकरात की तरह कभी शंकर बनकर
तुझको रख लूँगा हथेली पे लकीरों की तरह
तू अगर साथ चले मेरा मुकद्दर बनकर.
किसी बैलून की मानिन्द भर गया हूँ मैं
किसी बैलून की मानिन्द भर गया हूँ मैं
सुई को देख कर यारो! सिहर गया हूँ मैं
कभी तो गूँज की तरह रहा हूँ गुम्बद में
कभी सदाओं की तरह बिखर गया हूँ मैं
ये बात मौत की होती तो मैं न करता यक़ीं
ये ज़िन्दगी ने कहा कि मर गया हूँ मैं
हुआ ये इल्म मुझे बाद में वही मैं था
किसी जहाज़-सा जिस पर गुज़र गया हूँ मैं
नहीं किसी को पता इस शहर में नाम मेरा
किसी आवाज़ पे फिर भी ठहर गया हूँ मैं
अजीब बात वो चिड़ियों का आशियाना था
अजीब बात वो चिड़ियों का आशियाना था
कि जिसका आँधियों के साथ दोस्ताना था
परिन्दे देख के उसको हुए थे ख़ौफ़ज़दा
बड़ा अचूक उस कम्बख़्त का निशाना था
हमें ये हुक़्म मिला था कि भूखे बच्चों को
अदब का रोज़ सुबह क़ायदा पढ़ाना था
बड़ों के सामने छोटे अदब से आते थे
हमारी सभ्यता का वो भी इक फ़साना था
थी कोचवान के हर दर्द की समझ उसको
वो टूटी टाँग का घोड़ा बड़ा सयाना था
तआल्लुक़ात मैं पल भर में तोड़ता कैसे
कि उससे रिश्ता पुराना, बड़ा पुराना था
वो चाहता था उसे कोई ख़त लिखे लेकिन
न उसका नाम पता था, न कुछ ठिकाना था
मैं किस तरह उसे मेहमान-सा विदा करता
कि मेरे घर तो उसे बार-बार आना था.
भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको
भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको
राह की भीड़ मे क्यों छोड़ के जाऊँ उसको
दर्द मेरा है किसी खोटी अठन्नी जैसा
सुख के बाज़ार में कैसे मैं चलाऊँ उसको
सर्द रातों में यही चिन्ता रही है मुझको
एक आकाश है ओढ़ूँ कि बिठाऊँ उसको
अजनबी गाँव में ता-उम्र रही ये हसरत
बनके अपना कोई रूठे तो मनाऊँ उसको
एक मिट्टी का दीया और अँधेरा इतना
सोचता हूँ कि जलाऊँ या बुझाऊँ उसको ?
झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से
पाबंदियाँ लगा कर तुम बीन पर ये सोचो
क्या वश में कर सकोगे विषधर को बाँसुरी से
सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
ये भाव बन्दगी के सीखेंगे हम नदी से
रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
जबसे हुए हैं उनके सम्बन्ध तीरगी से
ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.
आँसुओं की तरह आँखों में जड़ा हूँ लोगो
आँसुओं की तरह आँखों में जड़ा हूँ लोगो
दर्द के ताजमहल ले के खड़ा हूँ लोगो
आश्वासन का कभी मुझ में भरा था पानी
अब फ़क़त ख़ाली बहानों का घड़ा हूँ लोगो
कल जहाँ लाश जलाई गई नैतिकता की
उस समाधि पे दिया ले के खड़ा हूँ यारो
मेरे पैरों में न बाँधो कोई नकली टाँगें
उतना रहने दो मुझे जितना बड़ा हूँ यारो
वो हवा फिर भी समझती रही बेगाना मुझे
साथ जिसके मैं कई बार उड़ा हूँ लोगो.
फिर आज बर्फ़ पर सूरज टहलने आया है
फिर आज बर्फ़ पर सूरज टहलने आया है
उदास धूप का मंज़र बदलने आया है
विषैला साँप है सूखा हुआ वो पात नहीं
जिसे तू पाँव से अपने मसलने आया है
तुम्हारे शहर का मौसम मुझे ज़हीन लगे
जो मेरे साथ किताबें बदलने आया है
हैं उसके हाथ में कुछ पक्षियों की आवाज़ें
कि जिनसे चुप्पियों का सर कुचलने आया है
वो दे न जाए पलायन की दीक्षा मुझको
कि जो भभूत मेरे तन पे मलने आया है.
जलेगा दीया तो सँवर जाएगा
जलेगा दीया तो सँवर जाएगा
लुटा कर उजाले बिखर जाएगा
बयाँ क्या करूँ बुलबुले का सफ़र
हँसेगा ज़रा और मर जाएगा
है शीशा तो गल जाएगा आग में
है सोना तो तप कर निखर जाएगा
गुलेलें हैं हर शख़्स के हाथ में
कि बचकर परिन्दा किधर जाएगा
तेरे वारदातों के इस शहर में
मेरा गाँव आया तो डर जाएगा
परिन्दा, हवा, धूप या चाँदनी
कोई उस कुएँ में उतर जाएगा
समय का है रथ पारदर्शी बड़ा
पता न चलेगा गुज़र जाएगा
वो रस्ता है तो जाएगा दूर तक
है आँगन तो घर में ठहर जाएगा.
जाते-जाते वो मौसम भी क्या ले गया
जाते-जाते वो मौसम भी क्या ले गया
राह के सूखे पत्ते उठा ले गया
उस मसीहे का सच क्या बताऊँ तुम्हें
जो दुआओं के बदले दवा ले गया
वारदातो के उस शहर में हर कोई
अपनी मुठ्ठी में पत्थर उठा ले गया
वो मुसाफ़िर भी अब ख़ुद पशेमान है
च्हीन कर मुझसे जो रास्ता ले गया
पूरे दिन में जिसे एक रोटी मिली
अपने बच्चों की ख़ातिर बचा ले गया
उससे क्या कोई होगा बड़ा राहज़न
मेरे जीवन की जो आस्था ले गया.
बेचारे मुफ़लिस का चेहरा फटी हुई पुस्तक-सा
बेचारे मुफ़लिस का चेहरा फटी हुई पुस्तक-सा
उसका है अस्तित्व द्वार पर गिरी पड़ी दस्तक -सा
भैया सच्ची बात किसी को कौन कहे इस युग में
झूठ तो शक्कर जैसा मीठा सच लगता अदरक-सा
बड़े लोग थे डाल के जूते आ बैठे मन्दिर में
और पुजारी दीन-हीन था खड़ा रहा दर्शक-सा
पलकों की तो बात ज़रा भी नहीं मानता यारो
मेरी आँखों का पानी है इक ज़िद्दी बालक -सा
नंगे पाँव रास्ता लम्बा,प्यास बड़ी निर्मोही
ऐसे में आ खड़ा है सूरज सिर पर खलनायक -सा
पपलू फ़्लैश,तम्बोला,रम्मी,पीना और पिलाना
लोग शहर के ख़ुशियों का यूँ करते हैं नाटक-सा.
मुझे मालूम है भीगी हुई आँखों से मुस्काना
मुझे मालूम है भीगी हुई आँखों से मुस्काना
कि मैंने ज़िन्दगी के ढंग सीखे हैं कबीराना
यहाँ के लोग तो पानी की तरह सीधे-सादे हैं
कि जिस बर्तन में डालो बस उसी बर्तन-सा ढल जाना
बयाबाँ के अँधेरे रास्ते में जो मिला मुझको
उसे जुगनू कहूँ या फिर अँधेरी शब का नज़राना
वो जिस अंदाज़ से आती है चिड़िया मेरे आँगन में
अगर आना मेरे घर में तो उस अन्दाज़ से आना
न कुर्सी थी, न मेज़ें थीं, न उसके घर तक़ल्लुफ़ था
कि उसके घर का आलम था फ़कीराना-फ़कीराना.
तुम्हारे शहर में ये बेघरों को मान मिला
तुम्हारे शहर में ये बेघरों को मान मिला
मिला मकान तो हिलता हुआ मकान मिला
मैं गुफ़्तगू की भला किससे इल्तजा करता
कि जो मिला मुझे बस्ती में बेज़बान मिला
तू मुझसे पूछ कि उन पक्षियों पे क्या गुज़री
जिन्हें उड़ान की ख़ातिर न आसमान मिला
अकेले रास्तों का क्या बताऊँ दर्द तुम्हें
कि चीखता हुआ पैरों का हर निशान मिला
मेरे लहू को परोसा है उसने मेरे लिए
कि वहशतों के शहर में जो मेज़बान मिला.
तुम्हारे शहर में ये बेघरों को मान मिला
तुम्हारे शहर में ये बेघरों को मान मिला
मिला मकान तो हिलता हुआ मकान मिला
मैं गुफ़्तगू की भला किससे इल्तजा करता
कि जो मिला मुझे बस्ती में बेज़बान मिला
तू मुझसे पूछ कि उन पक्षियों पे क्या गुज़री
जिन्हें उड़ान की ख़ातिर न आसमान मिला
अकेले रास्तों का क्या बताऊँ दर्द तुम्हें
कि चीखता हुआ पैरों का हर निशान मिला
मेरे लहू को परोसा है उसने मेरे लिए
कि वहशतों के शहर में जो मेज़बान मिला.
ये सच है बात कि वो लामकान था यारो
ये सच है बात कि वो लामकान था यारो
पर उसकी आँख में इक आसमान था यारो
यहाँ जो सारथी के रूप में नज़र आया
हमारे शहर में वो कोचवान था यारो
मैं सेंधमार से डरता तो किस लिए डरता
मेरा मकान तो ख़ाली मकान था यारो
वही परिन्दों का सब से बड़ा मसीहा था
कि जिसके हाथ में तीरो-कमान था यारो
ज़रूर वो किसी तस्कर की दक्षिणा होगी
पुजारी ले के जिसे बेज़बान था यारो.
जीने का अर्थ उसने समझा दिया सभी को
जीने का अर्थ उसने समझा दिया सभी को
जो बाँटता रहा था अपनी हर इक ख़ुशी को
काग़ज़ की कश्तियों को रेतीले तट पे रखकर
बहला रहे हैं बच्चे सूखी हुई नदी को
बैठा है हाथ जोड़े आँखों में एक आँसू
देखा नहीं है मैंने पूजा में यूँ किसी को
मेरा मकान शायद है ज़लज़लों का दफ़्तर
दीवारें मुतमइन हैं हर वक़्त ख़ुदकुशी को
ख़रीदार इत्र का था संवेदना से ख़ाली
ठुकरा दिया था जिसने फूलों की बन्दगी को
वो आदमी अजब था जो तीरगी मिटाने
अपना मकाँ जला कर लाया था रोशनी को.
ज़िन्दा रहने की ये तौफ़ीक उठाये रखना
ज़िन्दा रहने की ये तौफ़ीक उठाये रखना
दर्द की आँच को मुठ्ठी में दबाये रखना
ये भी होता है किसी घोर तपस्या जैसा
तेज़ आँधी में चरागों को जलाये रखना
ग़ैर-मुमकिन तो नहीं, फिर भी बहुत मुश्किल है
काग़ज़ी फूल पे तितली को बिठाये रखना
मोमबत्ती को बुझा देगी अगर उठ आई
तुम हवा को ज़रा बातों में लगाये रखना
कोई आहट कोई दस्तक किसी चिड़िया कि चहक
घर की सुनसान हवेली में सजाये रखना
कितना मुश्किल है ये मासूम परिन्दों के लिये
ख़ुद को चालाक शिकारी से बचाये रखना.
खुली कपास को शोलों के पास मत रखना
खुली कपास को शोलों के पास मत रखना
कोई बचाएगा तुमको यह आस मत रखना
ये कह के टूट गया आसमान से तारा
कि मेरे बाद तुम ख़ुद को उदास मत रखना
लगे जो प्यास तो आँखों के अश्क पी लेना
ये रेज़गार है, जल की तलाश मत रखना
यहाँ तो मौत करेगी हमेशा जासूसी
ये हादसों का शहर है,निवास मत रखना
अगर है डर तो अँगारे समेट लो अपने
हवा को बाँधने का इल्त्मास मत रखना
छिलेगा हाथ तुम्हारा ज़रा-सी ग़फ़लत पर
कि घर में काँच का टूटा गिलास मत रखना.
तूने लपटों को जो आँगन में उतारा होता
तूने लपटों को जो आँगन में उतारा होता
तो हर इक अश्क मचलता हुआ पारा होता
ज़िन्दगी होती है क्या इसको समझने के लिए
मौत को तूने किसी रोज़ तो मारा होता
वो तो जोगी की बसाई हुई इक कुटिया थी
बादशाहों का वहाँ कैसे गुज़ारा होता
दस्तकें दर पे बहुत देर तलक दीं उसने
काश ! इक बार मेरा नाम पुकारा होता
वो जो धरती पे भटकता रहा जुगनू बन कर
कहीं आकाश में होता तो सितारा होता.
ख़ुद से लड़ने के लिए जिस दिन खड़ा हो जाऊँगा
ख़ुद से लड़ने के लिए जिस दिन खड़ा हो जाऊँगा
देखना, उस रोज़ मैं ख़ुद से बड़ा हो जाऊँगा
मोमिया घर में उठा लाऊँगा उपलों की आँच
आग के रिश्ते से जिस दिन आश्ना हो जाऊँगा
मैं किसी मुफ़लिस के घर का एक आँगन हूँ, मगर
गिर पड़ी दीवार तो फिर रास्ता हो जाऊँगा
अपनी क़ूवत आज़माने की अगर हसरत रही
पत्थरों के शहर में इक आइना हो जाऊँगा.
सच बता आकाश क्या तब भी बुलाएगा मुझे
जब कभी मैं परकटी परवाज़-सा हो जाऊँगा