गुरुवार, मई 07, 2009

'भंवर में ज़िंदगी !' - सौरभ कुणाल

हम गुनगुनाते हैं आजकल
बस तेरी ही बातें
तेरी याद मे कटती है
अक्सर हमारी रातें।
क्या करूं मैं
समझ नहीं आता
आंखों से तेरा चेहरा
हटा नहीं पाता।
याद आती है रह-रह के
तेरी वो मुलाकातें
मेरे हाथों में तेरा हाथ
वो खामोश रातें।
तेरी हस्ती दिल से
मिटा नहीं पाता
अपनी आंखें ज़माने को
दिखा नहीं पाता।
चंद सांसों की मोहलत दो
तेरी यादों से दूर जाऊं
ऐ वख्त ! ले चल वहां
जहां खुद को मैं भूल जाऊं।
अब आ जा ऐ रात !
जीवन की शाम ढल चुकी
मेरी खामोश ज़िंदगी की
दीप अब बुझ चुकी।
कि खो गए हैं हम
सहमी हुई नज़र में
डूबा है मन
अनजान भंवर में।

'बर्बादी का हक' - सौरभ कुणाल

हक रखता हूं
तुझे बर्बाद करने का
प्यार भी तो तुझसे
हमीं ने किया था।
ज़माने से जब तुम्हें
मिली थी ठोकरें
स्वीकार भी तो तुझे
हमीं ने किया था।
ये क्या फलसफा है
मेरी ज़िंदगी का
ये क्या आरजू है
मेरी दोस्ती का !
कहां से चला था
कहां आ गया हूं
तेरी ज़िंदगी से
चला जा रहा हूं।
मेरी सांसों में कोई
सिमट सी गई
मेरी आंखों में कोई
नमी भी नहीं।
भूली सी बातें
उलझ सी गई हैं
सहमी हुई सांसें
खामोश हो गई हैं।
खोए से दिल में
कसक सी जगी है
यादों की चिनगारी
आग बन गई है।
भरी महफिल में
बदनाम हो गया हूं
नाम रखकर भी
गुमनाम हो गया हूं।

'शुक्रिया' - सौरभ कुणाल

शुक्रिया तेरी बात को
उस रात को शुक्रिया
उलझी हुई सांसों के
हालात को शुक्रिया।
खोया हूं मैं
तेरे रूप प्रकाश में
कुछ खोई हुई सी
मेरी सांस है।
वादियों में फैले
तेरे मधुर संगीत में
कुछ खोई हुई सी
मेरी आवाज़ है।
जिनकी खातिर जहां में
मैं हूं आज ज़िंदा
तनहाई से पल में
उनके साथ को शुक्रिया।
शुक्रिया तेरी बात को
उस हालात को शुक्रिया।

'मेरी ज़िंदगी की दीप' - सौरभ कुणाल

एक दीप जल रही
मेरी ज़िंदगी की
कभी मद्धम, कभी तेज़
रह रह के भभक रही
कभी दम तोड़ के उठ रही
मेरी ज़िंदगी की दीप जल रही।
दम तोड़ती
दिल के अपेक्षाओं से
कभी बुझती
सांसों की लहरों से
ये दीप ।
आशाओं के भंवर में
अनजानों के शहर में
कभी दबी चाहतों के तेल में
ये दीप धीमे से जल रही
मेरी ज़िंदगी की दीप जल रही।

'मैने सांस लेना छोड़ दिया' - सौरभ कुणाल

हुई है जबसे ये हालत मेरी
मैने विश्वास करना छोड़ दिया
लौटा हूं जबसे हर दर से तनहा
मैने आस लगाना छोड़ दिया।

जलाता हूं विश्वास का आज भी दिया
मगर दिल में मेरे रोशनी नहीं होती
बढ़ाता हूं राहों पे आज भी कदम
मगर सफर है कि मेरी पूरी नहीं होती।

लगाया है जब से फरेब को दिल से
मैने दोस्त बनाना छोड़ दिया
खाया है जबसे नज़र का धोखा
मैने प्यार जताना छोड़ दिया।

करता हूं लोगों से आजमी बातें, पर
निगाहों की खामोशी मिटा नहीं सकता
छुपाता हूं आज भी दिल का दर्द
मगर आंखों के आंसू छुपा नहीं सकता।

टूटा है जबसे मेरा हर ख्वाब
मैने उम्मीद लगाना छोड़ दिया
जब से उठा भगवान से विश्वास
मैने पूजा करना छोड़ दिया।

अब अंधेरा ही दिन है
अंधेरी है रातें
अब अंधेरों से ही करता हूं
दिल की बातें।

अब है न कोई रास्ता
न मेरी कोई मंज़िल
मुझमें है खामोशी
मैं खामोशी में शामिल।

छोड़ा है जबसे किसी ने मेरा साथ
मैने हाथ बढ़ाना छोड़ दिया
उठा है जबसे इंसां से निश्वास
मैने सांस लेना छोड़ दिया।

'मेरी गलियों में आज तुम आओगे' - सौरभ कुणाल

आज जलाया है चिराग हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे
आज धोया है अश्क हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे।

तेरे इंतज़ार में
सुबह से शाम हुई
राह तकती मेरी निगाहें
आज फिर बदनाम हुई।

मिटाई है मैने दिल की खामोशी
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे
आज छुपाई है मन की बेबसी
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे।

गलियों में फिर आज
हर आहट तेरी लगी है
वक्त भी न जाने
क्यों सहमा हुआ है।

आज भुलाई है हर बात हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे
आज दबाया है हर जज्बात हमने
कि मेरी गलियों में आज तुम आओगे।

'मेरी प्रेयसी' - सौरभ कुणाल

ग़र चाहूं तेरे पास आना
तुम दूर चले जाना
ग़र चाहूं तुम्हें बुलाना
तुम पास कभी न आना।

मेरे लिए तुम हो कोई
दीवानों की ख्वाब सी
खामोश मन से निकली हुई
कविताओं की मेरी प्रेयसी।

ग़र गुजरूं कभी तेरी गलियों से
और सुन ले मेरे कदमों की आहट
मिल जाए जो निगाहें मुझसे
ठुकराकर मेरी निगाहों की चाहत।

मेरी बेकरार सी आंखों से
तुम निगाहें चुरा लेना
याद भी करूं ग़र तुम्हें
तुम मुझे भूल जाना।

मेरे लिए तुम हो कोई
आसमां की चांद सी
यादों में विचरती हुई
मेरे स्वप्नलोक की रूपसी।।

'मुझे कुछ हो सा गया है' - सौरभ कुणाल

बहुत परेशां हूं मैं आज
मेरा कुछ खो सा गया है
कदम भी लड़खड़ा रहे हैं
मुझे कुछ हो सा गया है।

होठों से निकले शब्द
हैं अटपटे से
राहों पे बढ़ते कदम
कुछ अनमने से।

बहुत हैरान हूं मैं आज
दिल भी सो सा गया है
बहुत परेशां हूं मैं आज
मुझे कुछ हो सा गया है।

हलक से शब्द भी न निकल रहे
निगाहें भी कुछ बातें नहीं करती
दिल में दर्द का गुबार तो है
मगर आंखों से आंसू नहीं बहते।

निगाहों में बसी तस्वीर
ओझल सी हो गई है
खामोश काली रातें
अब लंबी हो गई हैं।

खामोश धड़कनों ने एक बात कही
उसे मैं सुन नहीं सकता
क्या करूं उसे छूने की कोशिश
जिसे मैं देख नहीं सकता।

क्या करूं देखकर आइना
अक्स भी गुम सा गया है
बहुत परेशां हूं मैं आज
मुझे कुछ हो सा गया है।