गुरुवार, अप्रैल 09, 2009

दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं- 'प्राण शर्मा'

नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सा-कशी अच्छी नहीं
दिल्लगी जिन्दादिली से कीजिए
दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं
एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं
ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं
मुस्कुराओ कुछ तो जीवन में कभी
हर घड़ी संजीदगी अच्छी नहीं
मिलते हैं कहां ये रोज़ रोज़
दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं

आइना देकर मुझे मुंह फेर लेता है तू क्यूं

आइना देकर मुझे, मुंह फेर लेता है तू क्यूं
है ये बदसूरत, कह दे झिझकने क्यूं लगा
दिल ने ही राहे-मुहब्बत को चुना था एक दिन
आज आंखों से निकल कर ग़म टपकने क्यूं लगा
गर ये अहसासे-वफ़ा जागा नहीं दिल में मिरे
नाम लेते ही तिरा, फिर दिल धड़कने क्यूं लगा
जाते जाते कह गया था, फिर न आएगा कभी
आज फिर उस ही गली में दिल भटकने क्यूं लगा
छोड़ कर तू भी गया अब, मेरी क़िस्मत की तरह
तेरे संगे-आसतां पर सर पटकने क्यूं लगा
ख़ुश्बुओं को रोक कर बादे-सबा ने यूं कहा
उस के जाने पर चमन फिर भी महकने क्यूं लगा।

मेरी गली के लोग भी कितने अजीब हैं...


मज़हब के नाम पर दिलों से सब क़रीब हैं

मेरी गली के लोग भी कितने अजीब हैं
वे दोस्त, मेरे दोस्त ज़रूरी तो ये नहीं

तेरे क़रीब भी हों जो मेरे क़रीब हैं
उस माँ की खुशदिली का ठिकाना न पूछिए

जिस माँ के बाल-बच्चे सभी खुशनसीब हैं

इसकी हरेक चीज़ मुझे तो अजीज़ है

माना कि जग के ढंग अजीबो-ग़रीब हैं

महफूज़ हैं वे प्राण ख़बर तुझ को भी तो हो

सारे मकाँ जो तेरे मकाँ के क़रीब हैं