बुधवार, अप्रैल 15, 2009

यह तो एक सिलसिला है.... सौरभ कुणाल

आप भी हो एक इंसान
जो करते हो शिक्षा दान
आपके प्रयासों से बनते हैं हम महान
अंधेरे जीवन में
आप प्रकाश भर देते हो
तभी तो, अपना
भाई, शिष्य, मित्र भी बनाते हो
जब भी निराश होता हूं जीवन से
उस मझधार से निकलने की राह बताते हो
सही और ग़लत का भेद समझाते हो
क्योंकि
हम हैं आज जहां पर
कल था कोई और
कल होगा भी कोई और
जिसे आप
सही मार्ग दिखाओगे
मंजिल तक पहुंचाओगे
तभी तो
भगवान से भी ऊंची पदवी पाकर
आप गुरू कहलाओगे...

प्यार की मन:स्थिति - सौरभ कुणाल

प्यारी सी सुबह की ग़रम-ग़रम चाय
लगने लगी है अब फीकी
रात की चैन भरी नींद
अब लगती है हल्की।।
चाहत है आपसे जुड़ने की
आपके नाम को पाने की
मन की भांति मिटाकर
रिश्तों को जीतने की।।
चाहता हूं विश्वास दिलाना
ख़ुद से एक नाम को जोड़ना
प्रीत को बढ़ाकर
आपको अपनी ओर मोड़ना।।
लक्ष्य तो निश्चित कर चुका
कर्म की है चाहत
मंजिल तक पहुंचकर ही
मुझे मिलेगी राहत।।
न है मेरी आदत
चांदी के जूते मारना
और न ही चाहता हूं
किसी के तलवे चाटना।।
खुद ही पर है विश्वास
सफलता की रखता हूं आस
आज निराश हूं तो क्या
शीघ्र फैलाऊंगा मन में सुहास।।
सुंदरता कोई चीज नहीं
दिल को पढ़ा है मैने
आंतरिक सुंदरता को
हृदय से परखा है मैने।।
देखे बिना अब रह नहीं पाता
आंखों से सब ओझल नज़र आता
मानसिक भ्रम से
ख़ुद को निकाल भी नहीं पाता।।

भ्रम में जीने की आदत सी हो गई है
निराशा की झड़ी लग गई है
हर शर्त है मंज़ूर
बस एक खुशी की चाहत रह गई है।।
दिल को कहीं लगा दिया है
उसने रोना सिखा दिया है
लाख कोशिश से भी
भ्रम का आवरण न हटा पाया है।।
हमें तो सिर्फ तलाश है आपकी
दिल को बस आस है आपकी
रूह के हर कंपन के स्वर में
नि:स्वार्थ चर्चा है आपकी।।
लगता है कि जी रहा हूं
पर मौत को पी रहा हूं
ज़िंदगी की मेरी ये चादर
रोज फट रही है, मैं सिल रहा हूं।।
लक्ष्य से दूर खड़ा हूं
बाधाओं की दहलीज पे पड़ा हूं
ज़िंदगी से लड़कर जैसे
हारकर गिरा पड़ा हूं।।
प्यार में उबाल था
दिल में कुछ सवाल था
देखा नहीं उसे जी भर के
बस इसी का तो मलाल था।।
दिल में कमी सी रह गई है
सांस थम सी गई है
हासिल करूं आपको हर हाल में
मुलाक़ात की आदत सी हो गई है।।
बात बहुत होती है आपसे
पर बताने की हिम्मत नहीं
सब पे रहम करता हूं
अपने दिल पे रहमत नहीं।।
आपमें अपनी ज़िंदगी देखता हूं
ग़म में बोतल खुल जाती है
आपकी एक झलक से
सारा नशा सरेआम उतर जाता है।।
ग़म में करता हूं नशा
दे सकती हो इसकी सज़ा
पर वादा करो मुलाक़ात का
मेरी रूह-आफ़ज़ा ।।
अपने हाल का जिक्र नहीं चाहता
चाहकर भी व्यक्त नहीं कर सकता
आपकी नज़र में मैं कुछ नहीं
ये भी तो आप कह सकतीं नहीं।।
अट्टास की चाह नहीं
मुस्कान पे मरता हूं
विष को पीकर भी
अमर बना रहता हूं।।
मन में भावनाएं भरी हैं
हलक से निकलते नहीं हैं
प्रश्न तो उठते हैं मन में
पर वो सुलझते नहीं हैं।।
खुद से बता सकता नहीं
प्यार का इज़हार कर सकता नहीं
आप भी तो मुझे
मेरे हाल पर छोड़ सकतीं नहीं।।
मुश्किलों को गले लगाया है
अपने उसूलों को पहचाना है
हर तरफ से मेरा
आपके पास ही ठिकाना है।।
खामोशियां मेरा दर्द-ए-दिल बयां करती हैं
मुस्कान में भी ग़म झलक जाती है
चेहरे को पढ़ने की ज़रूरत नहीं
पलकों से दबी आंखें मेरा हाल बताती हैं।।
मोहब्बत की आग में झुलसता हूं
बिना लक्ष्य के भटकता हूं
निर्विघ्न विचरण करके भी
हर सवालों में उलझता हूं।।
शर्तों को जानता नहीं
उम्मीद पर जीता हूं
सुबह को देखकर भी
शाम की तलाश करता हूं।।
रात कैसे बीत जाए
स्वप्न की दुनिया टूट जाए
देख लूं एक झलक आपकी
कि सारा दर्द हवा हो जाए।।
पता है कि प्यार धोखा है
ये जुल्म अनदेखा है
पर दिल को रोकूं कैसे
जालिम ! इसने तो किसी को परखा है।।
मनोदशा बदल सी गई है
दिल का फूल कली बन गई है
भ्रमर की तरह बंद हूं उसमें
बस सुबह की देर रह गई है।।
दर्द से सामना करना सीखा है
ग़म में भी मुस्कुराना सीखा है
अब भी लोग देखते हैं खुशी में
पर मेरा क्या कुछ नहीं लुटा है।।
आह से जब भी सामना होता है
हर सख्श तब परेशां होता है
फर्क अह पड़ता नहीं मुझे
दिल उनके दर्दों से जुड़ा होता है।।
हर शर्त पर चाहता हूं जीना
भूल कर भी नहीं चाहता मरना
कैसे कुर्बान करता है कोई जान
मरकर मिलती है पहचान !!
अपनी जान गंवा सकता नहीं
आन से हट सकता नहीं
कोई झांके मन की अंतर्गहराईयों में
दर्द-ए-जुदाई सह सकता नहीं।।
दिल में बसी है उनकी सूरत
बनकर रह गया हूं मूरत
ज़िंदा हूं मैं उनके प्राण से
कह सकता हूं मैं शान से।।
हाल-ए-दिल बयां कर सकता नहीं
आप नज़र तो पढ़ सकतीं हैं
पता है दर्द के मरीज हैं हम
आप मरहम तो दे सकतीं हैं।।
बेचैन दिल को समझा सकता नहीं
आप विचार तो कीजिए
जुदाई का है डर
ऐतबार तो कीजिए।।
प्यार में डूब सा गया हूं
खुद ही को भूल सा गया हूं
दुनिया की परवाह नहीं
बस सोचता हूं अपने प्यार की।।
तनहाई से डरता हूं
बस आपका साथ हो
आपसे मिलकर लगा है
मेरी खुशी-ग़म में सिर्फ आपका हाथ हो।।
रहम तो करना पड़ेगा
विश्वास को जानना पड़ेगा
मन की किताब को
आपको पढ़ना ही पड़ेगा।।
निर्णय हो आपके अंतर्मन का
जैसे वक्त हो किसी इम्तिहान का
दिल की गहराईयों से सोचो
ताकि इतिहास हो अमन-चैन का।।
अंतत: बता रहा हूं दिल की बात
इसे भी समझो खुद आप
दिल की अंतर्गहराईयों से
चाहत में है बस आपका साथ।।
हम करते हैं आपसे प्यार
बस इजाज़त तो दीजिए
हमें रहेगा जीवन भर इंतज़ार
आप इशारा तो कीजिए।।
भावनाओं को व्यक्त कर चुका
जवाब की इच्छा है
इसमें भी हर तरफ से
आप ही की स्वेच्छा है।।
आशा है कि आप पिघल गई गोंगी
हाल-ए-दिल को समझ गई होंगी
अब कहने को कुछ बचा नहीं
आप भी पसीज गई होंगी।।
दर्द के आंसू ही ऐसे होते हैं
जो हर किसी को मजबूर करते हैं
पर उस लम्हे में भी
सभी अपने दिल की ही सुनते हैं।।
आप भी सुनना मेरे दिल की
मिर्णय लेना अपने मन की
हर हाल में सोंचकर
जिज्ञासा रखना मिलन की।।
मेरी भी तमन्ना है
हाल से बदहाल तक
बस आपको ही पाने की।।

"स्वनिर्मित्त" - सौरभ कुणाल

मत जी ऐसी ज़िंदगी
जिसके सारे फैसले कोई और करे
तू विरोध कर
ज़रूरत पड़ी तो विद्रोह भी करना
अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी के लिए
अपने राह के चयन के लिए
फ़ैसला सही हो या ग़लत
पर हो तो तेरा
तेरे आस-पास के यथार्थ से
उपजा हुआ
तेरे दिल और दिमाग से
गुजरा हुआ
उम्र के इक्कीसवें साल में हो
फिर भी कोई समझता हो
तुम चीजों को समझ नहीं सकते
तो ये भूल है उसकी
तेरी नहीं
बाकी बची ज़िंदगी के लिए
तू अभी इस वक़्त
अपने यथार्थ को
छोड़ने की कोशिश मत कर
ये केवल खोखला आदर्श नहीं
तेरा हथियार है
जिससे तुम केवल दूसरों से ही नहीं
ख़ुद से भी लड़ सकते हो
मत बन उन फूलों की तरह
जो है किसी माली का मोहताज
स्वच्छंद रह जंगली झाड़ी की तरह
जो ख़ुद का है सरताज....