हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पे कितना तनहा होगा चाँद।
चाँद बिना हर शब यों बीती जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद।
आ पिया मोरे नैनन में मैं पलक ढाँप तोहे लूँ
ना मैं देखूँ और को, ना तोहे देखन दूँ।
रात ने ऐसा पेंच लगाया टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद।
जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक कतरा होगा चान्द।...
बुधवार, अप्रैल 08, 2009
हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद...- राही मासून रज़ा
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