मज़हब के नाम पर दिलों से सब क़रीब हैं
मेरी गली के लोग भी कितने अजीब हैं
वे दोस्त, मेरे दोस्त ज़रूरी तो ये नहीं
तेरे क़रीब भी हों जो मेरे क़रीब हैं
उस माँ की खुशदिली का ठिकाना न पूछिए
जिस माँ के बाल-बच्चे सभी खुशनसीब हैं
इसकी हरेक चीज़ मुझे तो अजीज़ है
माना कि जग के ढंग अजीबो-ग़रीब हैं
महफूज़ हैं वे प्राण ख़बर तुझ को भी तो हो
सारे मकाँ जो तेरे मकाँ के क़रीब हैं
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