हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे ।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले ।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने ।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी ।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।
शुक्रवार, अप्रैल 24, 2009
हम पंछी उन्मुक्त गगन के - शिवमंगल सिंह सुमन
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1 टिप्पणियाँ:
दस साल की लड़की ने एक लँगड़े-घायल तोते को पाला। उसकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसे पिंजरे में ही रखा गया। उस छोटे-से पिंजरे में ही उसने अपने जीवन के पच्चीस साल मस्त रहते हुए गुजारे!
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