गुरुवार, मई 14, 2009

मै कवि हूँ

सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी

होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी

हर विवश आँख के आँसू को

यूँ ही हँस हँस पीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाऒं की

हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की

दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की

मीराऒं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की

मुझको ही कथा सँजोनी है,

मुझको ही व्यथा पिरोनी है

स्मृतियाँ घाव भले ही दें

मुझको उनको सीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ

या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ

देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते

या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते

इन द्रौपदियों के चीरों से

हर क्रौंच-वधिक के तीरों से

सारा जग बच जाएगा पर

छलनी मेरा सीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले

पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले

सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना

शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना

पीडा की इस मधुशाला में

आँसू की खारी हाला में

तन-मन जो आज डुबो देगा

वह ही युग का मीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा

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