मत जी ऐसी ज़िंदगी
जिसके सारे फैसले कोई और करे
तू विरोध कर
ज़रूरत पड़ी तो विद्रोह भी करना
अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी के लिए
अपने राह के चयन के लिए
फ़ैसला सही हो या ग़लत
पर हो तो तेरा
तेरे आस-पास के यथार्थ से
उपजा हुआ
तेरे दिल और दिमाग से
गुजरा हुआ
उम्र के इक्कीसवें साल में हो
फिर भी कोई समझता हो
तुम चीजों को समझ नहीं सकते
तो ये भूल है उसकी
तेरी नहीं
बाकी बची ज़िंदगी के लिए
तू अभी इस वक़्त
अपने यथार्थ को
छोड़ने की कोशिश मत कर
ये केवल खोखला आदर्श नहीं
तेरा हथियार है
जिससे तुम केवल दूसरों से ही नहीं
ख़ुद से भी लड़ सकते हो
मत बन उन फूलों की तरह
जो है किसी माली का मोहताज
स्वच्छंद रह जंगली झाड़ी की तरह
जो ख़ुद का है सरताज....
बुधवार, अप्रैल 15, 2009
"स्वनिर्मित्त" - सौरभ कुणाल
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