तेरी खुशी से अगर गम में भी खुशी न हुई
वोह ज़िंदगी तो मुहब्बत की ज़िंदगी न हुई!
कोई बढ़े न बढ़े हम तो जान देते हैं
फिर ऐसी चश्म-ए-तवज्जोह कभी हुई न हुई!
तमाम हर्फ़-ओ-हिकायत तमाम दीदा-ओ-दिल
इस एह्तेमाम पे भी शरह-ए-आशिकी न हुई
सबा यह उन से हमारा पयाम कह देना गए
हो जब से यहां सुबह-ओ-शाम ही न हुई
इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी की
हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई
ख़्याल-ए-यार सलामत तुझे खुदा रखे
तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई
गए थे हम भी जिगर जलवा-गाह-ए-जानां में
वो पूछते ही रहे हमसे बात ही न हुई
बुधवार, मार्च 25, 2009
तेरी खुशी से अगर गम में भी खुशी न हुई / जिगर मुरादाबादी
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