मंगलवार, अप्रैल 14, 2009

तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़

तेरी बातें ही सुनाने आये
दोस्त भी दिल ही दुखाने आये



फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आये



ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
हम तुझे हाल सुनाने आये



इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म
कौन ये बोझ उठाने आये



अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कुछ तुझे याद दिलाने आये



दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम
काश फिर कोई बुलाने आये



अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आये



क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये



सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये

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